जयपुर। नकली दवा का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि अगर नकली दवा या फिर ऐसी दवा जिसका सैंपल फेल हो जाता है और उसका खुलासा होता है उसके बाबजूद भी कार्रवाई नहीं की जाती है। दरअसल एक ओर नकली दवाओं की सही समय पर रिपोर्ट नहीं आने की वजह से लाखों लाेग अमानक दवाइयां खाने को मजबूर हैं तो दूसरी ओर सरकार द्वारा बनाया गया नकली दवा प्रकोष्ठ कागजों में सिमट कर रह गया है।
ड्रग विभाग की कार्यशैली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010 से बनाए गए नकली दवा प्रकोष्ठ ने 10 साल में ना तो कभी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की, ना ही किसी को सजा दिला सका। बता दें कि साल 2007 से एक टीम भी बनाई गई थी जिसमे राजाराम शर्मा, ड्रग कंट्रोलर व प्रभारी नकली दवा प्रकोष्ठ, अनूप रावत, सहायक औषधि नियंत्रक, मनीष मोदी, डीसीओ, सांवरमल, डीसीओ। इन्हें पूरे राज्य में कार्रवाई का अधिकारी का अधिकार है। सरकार ने तय किया था कि यह टीम महीने में 15 दिन में जहां भी सूचना हो, वहां जाकर कार्रवाई करे और अपना तंत्र मजबूत कर नकली दवाओं के मामले में कार्रवाई करती रहे।
इतने प्रकरण तो नकली दवाओं के मिले हैं, प्रकोष्ठ के महज 09
2017- 1272018 – 37
2019 – 39 2020 – अभी तक केवल सात
तो वहीं दूसरी तरफ हैल्थ सेकेट्री – सिद्धार्थ महाजन ने कहा है कि अगर ऐसी टीम के बारे में जानकारी नहीं है। ऐसा है तो अधिकारियों से गंभीरता से बात कर कार्रवाई शुरू की जाएंगी।
महज 9 कार्रवाई की हैं लेकिन उसमें भी जिला स्तर टीम की मदद ली गई। ऐसे में ड्रग विभाग का सिस्टम खुद ही सवालों में खड़ा हो गया है कि आखिर निरीक्षण करने सैंपल फेल होने के बाद भी कंपनियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो पाती और क्यों न्यायिक स्वीकृति जारी की जाती।
प्रदेश में कहीं भी, किसी भी जगह पर नकली दवा की सूचना या खुद की इंटेलीजेंस के आधार पर इस प्रकोष्ठ की टीम को कार्रवाई करनी होती है। लेकिन प्रकोष्ठ के इंचार्ज ड्रग कंट्रोलर के नेतृत्व में किसी भी ड्रग इंस्पेक्टर ने कहीं कार्रवाई ही नहीं की। पिछले एक दशक में टीम ने केवल 9 जगह कार्रवाई की।