नई दिल्ली। जरूरी दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेपों से उनकी कीमतों में, उसी तरह की गैर-नियंत्रित दवाओं की तुलना में बढ़ोतरी ही हुई है। संसद में पेश वर्ष 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में बताया गया कि भारत में सरकारों ने हमेशा राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) और दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश के जरिए दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने पर भरोसा किया है। सरकार ने डीपीसीओ के जरिए यह सुनिश्चित किया है कि राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची (एनएलईएम) के तहत सूचीबद्ध दवाएं आम लोगों को जायज कीमत पर मिले। समीक्षा में कहा गया है कि दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) 2013 के जरिए दवा की कीमतों के विनियमन से नियंत्रित फार्मास्यूटिकल्स दवाओं की कीमतों में उसी तरह की गैर-नियंत्रित दवाओं की तुलना में बढ़ोतरी हुई है। विश्लेषण बताता है कि सस्ती दवाओं के मुकाबले महंगी दवाओं की कीमतों में अधिक बढ़ोतरी देखने को मिली और खुदरा दुकानों के मुकाबले अस्पतालों में बिकने वाली दवाएं अधिक महंगी हुईं, जो डीपीसीओ के उद्देश्य से एकदम उल्टा है। एक अनुमान के अनुसार डीपीसीओ, 2013 के तहत आने वाली दवाओं की कीमतों में औसतन प्रति एमजी 71 रुपये की बढ़ोतरी हुई, जबकि डीपीसीओ से अप्रभावित दवाओं की कीमतें औसतन 13 रुपये प्रति एमजी बढ़ीं।