भरतपुर (राजस्थान)। जिला सहकारी उपभोक्ता भंडार की दुकानों पर भी नकली दवाइयां सप्लाई हो जाने का मामला सामने आया है। कई दवाइयां ग्राहकों तक भी पहुंच गई। यह तब है जब शक होने पर दवाइयों की बिक्री करीब दो महीने पहले ही रोक दी गई थी। अब लैब की जांच रिपोर्ट में 5 में से एक दवा के नकली होने की पुष्टि हो गई है। जबकि बाकी 4 अन्य दवाओं की जांच रिपोर्ट आनी अभी बाकी है। खास बात यह है कि सहकारी उपभोक्ता भंडार की दुकानों से नकली दवाएं बिकने का पता 12 दिसंबर, 2019 को चला। औषधि नियंत्रक की टीम ने सुभाष पार्क स्थित भरतपुर जिला सहकारी उपभोक्ता भंडार में जांच की। वहां 5 दवाओं के नकली होने का शक हुआ। इन दवाओं की एक-एक स्ट्रिप ली गई और बाजार में उपलब्ध असली दवाओं से मिलान किया गया। इस दौरान पता चला कि नकली दवा पर बैच नंबर, अवधिपार की तिथि स्याही से लिखी हुई थी। जबकि असली दवा पर ये कंप्यूटर से ही प्रिंटेड होती हैं। इनमें एक दवा का रंग भी बिलकुल सफेद न होकर हल्का सफेद (ऑफ व्हाइट) था। संदेह के आधार पर तभी उपभोक्ता भंडार से 5 दवाओं के आधिकारिक तौर पर सैंपल लिए गए। साथ ही इन सभी दवाओं की बिक्री रोक दी गई थी। लैब से हाल ही में 4 फरवरी को मिली रिपोर्ट के मुताबिक टेबलेट जालरा 50 एमजी बैच नंबर बीसीके 61 का सैंपल फेल होना बताया गया है। इसमें मूल घटक (साल्ट) की मात्रा शून्य थी। लैब जांच रिपोर्ट के मुताबिक टेबलेट जालरा 50 एमजी को मल्टीनेशनल कंपनी नोवार्टिस हेल्थ केयर बनाती है जो डायबिटीज में काम आती है। लेकिन, भरतपुर जिला सहकारी उपभोक्ता भंडार की दुकान से दवा का जो सैंपल लिया गया, वह असली से बिल्कुल मिलान नहीं खा रहा था। औषधि नियंत्रक विभाग के अधिकारियों का कहना है कि असली दवा में महंगा सॉल्ट विल्डागिल्प्टन सॉल्ट 50 एमजी उपयोग किया जाता है। जबकि नमूने के तौर पर ली गई बैच नंबर बीसीके 61 में सस्ता सॉल्ट ग्लीमिप्राइड 3.17 एमजी उपयोग लिया गया था।