जयपुर। जोड़ों के दर्द व सूजन कम करने वाली ग्लूकोसामिन एंड डायसेरिन टेबलेट की जांच में शून्य घटक पाया गया है। ग्लूकोसामिन सल्फेट में पोटेशियम क्लोराइड पोषक तत्व व हड्डी को मजूबत बनाने वाला डायसेरिन ही मौजूद नहीं है। ऐसे में गठिया के मरीजों को दी जाने वाली दवा से फायदे की बजाय सेहत बिगडऩे का खतरा ज्यादा है। दर्द को कम करने वाला डाइक्लोफेनिक सोडियम इंजेक्शन की जांच में भी घातक मिला है। इस इंजेक्शन से मरीज की जान भी जा सकती है। अमानक पाए जाने वाले बैच को बैन कर दिया गया है। बाजार में बिक रही दवाओं की जांच का जिम्मा चिकित्सा विभाग के औषधि नियंत्रण संगठन का है। जांच के लिए एकमात्र लैब व पर्याप्त स्टाफ की कमी के चलते पेंडेंसी का ग्राफ बढ़ रहा है। ऐसे में जांच में अमानक और नकली साबित होने वाली दवाएं भी रिपोर्ट आने से पहले मरीजों तक पहुंच चुकी होती हैं। एसएमएस मेडिकल कॉलेज के फार्माकोलोजी विभाग के लोकेन्द्र शर्मा कहना है कि दवाओं की एक्सपायरी डेट एक से दो साल की रहती है। ऐसे में जब तक जांच रिपोर्ट बनती है, तब तक प्रदेश में बड़ी मात्रा में दवा खप चुकी होती है। इस मामले में पूछने पर चिकित्सा मंत्री डॉ.रघु शर्मा का कहना है कि प्रदेश में अभी एक ही सरकारी ड्रग टेस्टिंग लैब है। जोधपुर, उदयपुर और बीकानेर में तीन और नई लैब के संचालित होने के बाद पेंडेसी कम हो जाएगी। फिलहाल उपकरणों की खरीद की जा रही है। उधर, ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा ने कहा कि लैब की जांच में फेल होने पर औषधि नियंत्रण अधिकारियों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत संबंधित दवाओं का स्टॉक जब्त कर कार्यवाही के निर्देश दिए हैं।