नई दिल्ली। सिंगल डोज की कीमत 29 करोड़ रुपये में ज्यादा सुनकर हर किसी के होश उड़ जाएंगेे। दरअसल, ये दुनिया की सबसे महंगी दवा है। इस दवा का नाम हेमजेनिक्स है। यह दवा ‘हीमोफ़ीलिया बी’ नामक दुर्लभ बीमारी के इलाज में रामबाण का काम करती है। हेमजेनिक्स की सिंगल डोज की कीमत 35 लाख डॉलर यानी 291373250 रुपये है।

अमेरिकी कंपनी यूनीक्योर ने किया निर्माण 

अमेरिकी कंपनी यूनीक्योर ने दुनिया की इस सबसे महंगी दवा का निर्माण किया है। इस दवा के वितरण के अधिकार सीएसएल बेहरिंग के पास हैं। कंपनी के अनुसार, हेमजेनिक्स एक जीन थैरेपी है। कंपनी का दावा है कि इस दवा को एक बार लेने पर ही हीमोफ़ीलिया बी बीमारी ठीक हो जाती है।

दुनिया की सबसे महंगी दवा

इंस्टीट्यूट फ़ॉर क्लीनिकल एंड इकोनॉमिक रिव्यू के अनुसार हेमजेनिक्स दुनिया की सबसे महंगी दवा है। यह स्वतंत्र संस्था दवाओं और अन्य मेडिकल उत्पादों की क़ीमत का आंकलन करती है। संस्था का कहना है कि बाज़ार में उपलब्ध अन्य सिंगल डोज़ वाली जीन थेरेपी दवाओं, जैसे ज़ाइनटेग्लो (28 लाख डॉलर) और ज़ोल्गेंज्मा (21 लाख डॉलर) के मुकाबले हेमजेनिक्स बहुत महंगी है. ज़ाइनटेग्लो बीटा थैलेसीमिया के इलाज में काम आती है। वहीं, ज़ोल्गेंज्मा स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफ़ी से पीडि़त मरीजों को दी जाती है.

इस दवा के दाम क्यों हैं इतने ज्यादा

जीन थेरेपी के लिए काम आने वाली असरदार दवाओं के दाम ज्यादा ही होते हैं। सीएसएल बेहरिंग ने पिछले साल नवंबर में हेमजेनिक्स को अनुमति मिलने के बाद कहा था कि इसकी क़ीमत इसके क्लीनिकल, सामाजिक, आर्थिक और इनोवेटिव वैल्यू को देखते हुए ज्यादा रखी गई है।

कंपनी का कहना था कि चूंकि यह सिंगल डोज़ थेरेपी है। इस कारण से इस दवा का खर्च हीमोफ़ीलिया बी के इलाज में पहले से इस्तेमाल किए जा रहे इंजेक्शन से कम ही बैठेगा। बताया गया है कि सीएसएल बेहरिंग ने इस थेरेपी के लाइसेंस और मार्केटिंग के लिए इसके शुरुआती डेवलपर यूनीक्योर को 45 करोड़ डॉलर दिए थे।

हीमोफ़ीलिया बी का इलाज पुरानी पद्धति से करने पर पूरी जिंदगी में एक मरीज को करीब दो करोड़ डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। वहीं, हेमजेनिक्स का खर्च 35 लाख डॉलर ही है। इस तरह यह दवा सस्ती मानी जा सकती है। सीएसएल बेहरिंग के पास अमेरिकी बाज़ार में अगले सात सालों तक इस दवा के वितरण का अधिकार सुरक्षित है।

हीमोफ़ीलिया बी क्या होता है?

कऱीब चालीस हज़ार लोगों में एक इंसान को ‘हीमोफ़ीलिया बी’ बीमारी होती है। ये महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में अधिक पाई जाती है। हीमोफ़ीलिया दो प्रकार का होता है। ए और बी। यह बीमारी जेनेटिक कोड में गड़बड़ी के चलते होती है।

ये हैं इस रोग के कारण

सिंगल डोज

बीमार व्यक्ति के शरीर में खून जमने के लिए ज़रूरी फ़ैक्टर 9 नाम का प्रोटीन नहीं बन पाता। इससे जानलेवा रक्तस्राव का खतरा बना रहता है। फ़ैक्टर 9 ब्लड प्लाज्मा में होता है। मरीज़ों को कई हफ़्ते तक फ़ैक्टर 9 के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। वहीं, हेमजेनिक्स के निर्माण में लैब में बने एक वायरस का इस्तेमाल किया जाता है। इस वायरस में ऐसा जीन होता है जो फ़ैक्टर 9 को बनाता है। इससे तेजी से फ़ैक्टर 9 प्रोटीन बनता है और घाव जल्द सूखता है।