नई दिल्ली। मिश्रित दवाइयों (कंबीनेशन ड्रग) को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले को लेकर चिंता जताई जा रही है। माना जा रहा है कि इससे निचली अदालतों के जजों को यह गलत संदेश जा सकता है कि जटिल नियामक मामलों में विधाई प्रक्रियाएं अगर अड़ंगा बने तो उसे आसानी से दरकिनार किया जा सकता है। फैसला अपने आप में परस्पर विरोधी भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने फिक्स्ड डोज 344 मिश्रित दवाइयों कंबीनेशन ड्रग्स) की बिक्री पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई रोक पर अभी बीते साल दिसंबर महीने में एक फैसला सुनाया है। सरकार द्वारा कीमतों पर नियंत्रण को धता बताने के लिए दवा कंपनियां 70 के दशक के अंत से ही इन मिश्रित दवाइयों की बिक्री कर रही हैं। फिक्स्ड डोज कंबीनेशन ड्रग (एफडीसी) दो या दो से अधिक दवाइयों के मिश्रण को कहा जाता है।
इनमें से कई कंबीनेशन दवाइयों को राज्यों के लाइससें देने वाले अधिकारियों ने मौजूदा ड्रग एवं कास्मेटिक ऐक्ट की अवहेलना करते हुए बिक्री की स्वीकृत दी हुई है। कानून की अवहेलना के साथ साथ इलाज में इसके प्रभावी व सुरक्षित होने के कोई वैज्ञानिक व निदान संबंधी आधार भी नहीं हैं।
सरकार ने ड्रग व कास्मेटिक ऐक्ट, 1940 के सेक्शन 26 ए के तहत इन मिश्रित दवाइयों को तर्कहीन करार देते हुए उन पर प्रतिबंध लगाया था। यह फैसला एक विशेषज्ञ कमेटी की अनुशंसाओं के आधार पर लिया गया। सरकार ने प्रो सीके कोकटे के नेतृत्व में यह कमेटी गठित की थी। यह प्रतिबंध दवा कंपनियों के मुनाफे पर पर करारी चोट थी। बाजार में ऐसी हजारों मिश्रित दवाइयों की बिक्री कर ये कंपनियां भारी मुनाफा कमा रही हैं।
फार्मा कंपनियों ने इस प्रतिबंध को यह तर्क देते हुए चुनौती दी कि केंद्र सरकार ने इस प्रतिबंध के मुतल्लिक ड्रग्स तकनीकी अडवायजरी बोर्ड (डीटीएबी, दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड) से सलाह नहीं ली। डीटीएबी एक सलाहकारी निकाय है जिसका गठन ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक ऐक्ट के सेक्शन 5 के तहत किया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस तर्क को मानते हुए इस बैन को निरस्त कर दिया।
इसके बाद केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 26 सेक्शन 26 ए के लिए केंद्र सरकार का डीटीएवी से सलाह मशविरा करना जरूरी नहीं है।
सुर्पीम कोर्ट का यह फैसला सही था लेकिन साथ ही कोर्ट ने इसके साफ उलट एक आदेश भी दे दिया। सेक्शन 25ए के तहत फैसला लेने के लिए केंद्र सरकार डीटीएबी की सलाह लेने के लिए बाध्य नहीं है- इसके पक्ष में एक मजबूत फैसला देने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी वकील की एक सलाह मानते हुए सरकार को ठीक इसके उलट कार्रवाई करने का आदेश देने का फैसला सुना दिया। कोर्ट ने यह मानने के बाद भी कि सरकार 25ए के तहत डीटीएबी से सलाह मशविरा करने के लिए बाध्य नहीं है, सरकार को मामले को डीटीएबी के पास भेजने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि 344 मिश्रीत दवाइयों के मामलों को सरकार डीटीएबी के पास भेज दे ताकि वह इनमें से हर एक मामले की पड़ताल करे और अंत में अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज दे। कोर्ट ने यह साफ किया कि इस मामले के अलग तरह के तथ्यों को देखते हुए एक बार के लिए ऐसा किया गया है।
यह अजीबोगरीब नहीं लगता कि सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को संसदीय कानून की अनदेखी करने की सलाह दे दी। विशेष चिंता की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले के उलट जाकर इसे इसे मान भी लिया। सेक्शन 26ए के फैसले को पढ़ें तो यह साफ है कि दवाइयों को प्रतिबंधित करने का अधिकार पूरी तरह केंद्र सरकार का है। सवाल उठ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिर संसद द्वारा स्थापित प्रक्रिया की अनदेखी कर विधाई कानून की जगह अपनी प्रक्रिया को तरजीह क्यों दी। अब हश्र क्या होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। अब डीटीएबी के पास इन दवाओं की बिक्री कर रही दवा कंपनियों की लंबे समय तक सुनवाई चलती रहेगा। वे जानबूझ कर लंबे समय लगाएंगे ताकि उनका कारोबार चलता रहे।