आयुष विभाग हरियाणा के महानिदेशक डॉ. साकेत कुमार की गुप्त रणनीति के आधार पर दो दिन पहले देर रात तक झज्जर जिले की 22 आयुर्वेद फार्मा कंपनियों पर एक साथ तीन टीमों द्वारा की गई छापामारी के बाद सब कुछ सीधे तौर पर समझ नहीं आ रहा है। झज्जर जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ. दलबीर सिंह राठी के मुताबिक, सब कुछ ‘कॉन्फीडेंशल’ था। फार्मा कंपनियों में मानकों को ताक पर रखकर दवा निर्माण करने की शिकायते प्राप्त हो रही थी लेकिन इस बड़ी कार्रवाई में ऐसी खामियां नहीं मिली। फिर भी तीनों टीमों ने अलग-अलग फार्मा कंपनियों से 90 आयुर्वेदिक दवाओं के सैंपल लिए। टीम में शामिल कुछ अधिकारी सैंपलों को कुरुक्षेत्र स्थित सरकारी लैबोरेट्री में भेजने की बात कह रहे थे तो कुछ ने कहा कि जरूरी नहीं कुरुक्षेत्र भेजें, कहीं दूसरी जगह भी भेजे जा सकते हैं। अधिकारियों की मानें तो लैब का नाम सार्वजनिक होने से फार्मा कंपनियां सांठ-गांठ कर बच जाती है।
सूत्रों के मुताबिक, कुरुक्षेत्र कीश्रीकृष्णा आयुर्वेदिक कॉलेज में बनी इस लेबोरेट्री को शुरू हुए छह महीने हुए हैं। लेबोरेट्री में अब तक कुल 90 सैंपल भी नहीं आए हैं। आयुर्वेदिक अधिकारियों का कहना है कि ऐसी कोई तकनीक नहीं बनी जो आयुर्वेद की दवा में शामिल दृव्य/तत्व की अलग-अलग मात्रा बता सके। सैंपल में आमतौर पर केवल फंगस टेस्ट किया जाता है। रोहतक में भी पिछले दिनों फार्मा कंपनियों से 12 सैंपल लिए थे लेकिन सभी गुणवत्तापरक मिले। आयुर्वेद विभाग की ओर से भी ऐसी कोई रिपोर्ट जारी नहीं की जाती जिससे सैंपल की जांच की जानकारी मिले। हरियाणा रा’य आयुर्वेद दवा नियंत्रक डॉ. सतीश खटकड़ की मानें तो फार्मा कंपनियों के उत्पादों की बराबर जांच की जाती है। गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं किया जाता। जिस भी कंपनी की दवा में खोट मिलेगा, उसके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।