रोहतक: एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक अखबार ने जिस ढंग से हरियाणा के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग की कलई खोली है, उससे सिस्टम पर उंगलियां उठने लगी हैं। त्यौहारी सीजन सिर पर है लेकिन मिलावटखोरी रोकने के लिए हरियाणा में न तो पर्याप्त अधिकारी हैं और न सिस्टम। खाना-पूर्ति के लिए डॉक्टरों पर फूड सैंपलिंग की जिम्मेदारी डाल दी जबकि हरियाणा के अस्पताल डॉक्टरों की कमी से पहले ही जूझ रहे हैं। खास बात ये कि अधिकारी कम बेशक हैं लेकिन जितने हैं वह इतने सक्षम हैं कि सूंघकर या चखकर ही खोट होने की आशंका भांपते हुए सैंपल भर लेते हैं। ये स्थिति तब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री वो अनिल विज है, जिनकी डिक्शनरी में माफी जैसा शब्द ही नहीं है। लापरवाही देखते ही अधिकारियों पर बरस पड़ते हैं।
राज्य में 22 जिलों पर मात्र 11 फूड सेफ्टी अधिकारी (एफएसओ) है। वर्ष 2011 में गठित हुए एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटिव विभाग) में भर्ती के लिए फाइलें कार्यालयों में धूल फांक रही है। लेकिन इन फाइलों को खोलने की जहमत कोई नहीं उठा रहा। एफडीए विभाग में वर्षों से नई भर्ती नहीं होने के चलते जुगाड़ से काम चलाया जा रहा है। सिरसा, फतेहाबाद, पलवल, मेवात, रोहतक, पानीपत, कैथल, पंचकुला, यमुनानगर, नारनौल चरखी दादरी में स्थाई एफएसओ ही नहीं है। दूसरे जिलों में तैनात एफएसओ इन जिलों का अतिरिक्त भार ढोह रहे हैं।
त्यौहार शुरू होने के कारण फौरी तौर पर स्वास्थ्य विभाग के 500 डॉक्टरों को सैंपल कार्य में लगाए जाने की तैयारी है। लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि 2750 स्वीकृत मेडिकल ऑफिसर (एमओ) में 1634 ही उपलब्ध हैं। यानी 1116 की कमी है। वहीं, 93 सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद खाली पड़े हैं। कहना अनुचित न होगा कि हरियाणा में फूड सैंपलिंग दिखावाभर है। 14 दिन में रिपोर्ट देने का दावा करने वला महकमा दो से तीन माह में रिपोर्ट ला पाता है। तब तक सैंपलिंग लिए गए खाद्य पदार्थ उपभोक्ताओं को बेच दिए जाते हैं। सूत्रों की मानें तो पिछले दो साल में प्रदेश में करीब 4344 सैंपल लिए गए। इन सभी उत्पादों की रिपोर्ट उत्पाद खप जाने के बाद आई। इनमें से 1260 प्रोडक्ट सब स्टैंडर्ड और अनसेफ निकले।
खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिए चर्चित सोनीपत, गुडग़ांव, रोहतक, हिसार, फरीदाबाद, झज्जर, जींद, जिलों में यह गोरखधंधा फैलता जा रहा है। अकसर कार्रवाईयों में सर्वाधिक मामले इन्हीं जिलों सें पकड़े जाते हैं। अकेले सोनीपत में पिछले दो सालों में 120 खाद्य पदार्थों के सैंपल लिए गए। इनमें रिफाइंड, चिकन तरी, मिठाई, दूध के सैंपल फेल आए हैं। बड़ी बात यह है कि जिन जगहों के सैंपल लिए गए वहां उन उत्पादों की लगातार बिक्री होती रही। कार्रवाई के नाम पर 50 हजार का जुर्माना किया गया। राई स्थित एक फैक्टरी संचालक पर डेढ़ लाख का जुर्माना हुआ है। प्रदेश के अन्य जिलों में ऐसे ही हालात हैं। सैंपल फेल आने के बाद भी विभाग संबंधित फर्म संचालक को नोटिस भेजता है। अगर वह जांच से संतुष्ट नहीं है, तो निर्धारित राशि का ड्राफ्ट लगाकर विभाग की सेंटर लैब से दोबारा जांच करवा सकता है। तब तक बिक्री होती रहती है।
एसडीसी, एफडीए हरियाणा एनके आहुजा कर्मचारियों की कमी तो मानते हैं लेकिन सिस्टम और कार्रवाई में किसी तरह का खोट नहीं मानते। खैर, जिस कुर्सी पर वह बैठे हैं, वहां से इस तरह का बयान देना उनकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। कुलमिलाकर सिस्टम देखकर कह सकते हैं कि हरियाणा में खाने-पीने से किसी पर संकट आया तो उसमें स्वास्थ्य विभाग को जिम्मेदार ठहराना कतई उचित नहीं। अपनी सुरक्षा खुद करें।