नई दिल्ली। हाल ही में 329 दवाइयों पर बैन लगवाने के पीछे एस श्रीनिवासन नामक व्यक्ति को जिम्मेवार माना गया है। एस श्रीनिवासन स्वयं एक फार्मा कंपनी का मालिक है। वह काफी समय से लगातार याचिकाओं के जरिए उन दवाओं को बैन करने की मांग करते रहे हैं जिनका निर्माण वैज्ञानिक आधार पर होने की बजाय सिर्फ व्यापारिक हितों के लिए होता है। इस बैन का असर सैरिडॉन, पीरामल, ल्यूपिन जैसे जाने-माने ब्रांड्स पर पड़ा। इसके चलते फाइजऱ व मैक लिऑड्स जैसी फार्मास्यूटिकल कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट्स में सुधार करना शुरू कर दिया है। हालांकि अब सैरिडॉन समेत तीन एफसीडी दवाओं से बैन हट चुका है।
श्रीनिवासन आईआईटी खडग़पुर और आईआईएम बेंगलुरु से पढ़े है। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी से उन्होंने एपिडिमिऑलजी यानी दवाओं के वितरण और रोग संबंधी पढ़ाई की। इतनी बेहतर डिग्री होने के बाद वह बड़ी कंपनी खोल कर करोड़ों कमा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कुछ और लोगों के साथ मिलकर एक लो कॉस्ट स्टैंडर्ड थिरैप्यूटिक्स नाम की नॉट फॉर प्रॉफिट फार्मास्यूटिकल फर्म खोली जो कि वडोदरा में है। श्रीनिवासन का कहना है कि लालच के चलते फार्मास्यूटिकल कंपनियां ग़लत तरीके से फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन (एफडीसी) का निर्माण कर रही थीं।
डब्ल्यूएचओ और सभी स्टैंडर्ड फार्मैकॉलजी की किताबों ने 25 मामलों को छोडक़र सामान्य रूप से इस पर रोक लगा रखी है। एचआईवी, हिपेटाइटिस-सी, मलेरिया और टीवी जैसे रोगों के लिए ही एफडीसी दवाओं को बनाने की अनुमति है। सिंगल ड्रग की क्वालिटी टेस्टिंग के लिए नियम पूरे हैं लेकिन कॉम्बिनेशन ड्रग के लिए ठीक से नियम नहीं हैं। श्रीनिवासन ने कहा कि जिन बड़ी दवा निर्माता कंपनियों को अपने देश में इसे बेचने की अनुमति नहीं मिलती है वो इसे भारत में बेचते हैं।