पटना। खाद्य एवं औषधि नियंत्रण प्रशासन बिहार की डेढ़ साल से चल रही ऑनलाइन लाइसेंसिंग प्रक्रिया पूरी हो गई है। ऑनलाइन होने के बाद औषधि नियंत्रण विभाग अनियमित तरीके से चल रही मेडिकल दुकानों पर शिकंजा कसने की तैयारी में जुट गया है। इससे बिहार के केमिस्टों के हाथ-पांव फूल गए हैं। दरअसल, पहले ड्रग लाइसेंस मैनुवली बनाये जाते थे। इसमें ड्रग इंस्पेक्टर, लाइसेंसी अॅथोरिटी घालमेल कर देते थे। रिश्वत के रूप में मोटी रकम लेने के बाद लाइसेंसी अॅथोरिटी एक फार्मासिस्ट के नाम पर कई लाइसेंस बना देते थे। ऐसे ड्रग लाइसेंस की संख्या करीब पचास हजार है। जहां एक फार्मासिस्ट के नाम पर कई-कई ड्रग लाइसेंस बनाये गए। अब चूंकि एफडीए ऑनलाइन हो गया है तो एक फार्मासिस्ट के नाम पर सिर्फ एक ही ड्रग लाइसेंस जारी होगा। ऐसे में करीब 45 हजार मेडिकल स्टोरों का रिन्यूअल रुक जाएगा और वे बंद हो जाएंगे।
गौरतलब है कि बिहार एफडीए ऑनलाइन करने को लेकर केमिस्ट संगठनों ने कई बार विरोध प्रदर्शन किया। मामला कोर्ट तक भी गया लेकिन कोर्ट में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। नतीजतन केमिस्ट संगठन बैकफुट पर चले गए। ऑनलाइन होने के बाद से बिहार फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने नए ड्रग लाइसेंस सिर्फ ऑनलाइन बनाना शुरू किया है। प्रशासन उन सभी मेडिकल स्टोर्स का डाटा तैयार करने में जुटा है जो एक से ज्यादा फार्मासिस्ट के रजिस्ट्रेशन के दम पर चल रहे हैं। ऐसे में जल्द ही करीब 45 हजार मेडिकल स्टोरों का बंद होना तय माना जा रहा है।
फार्मासिस्ट फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय कुमार भारती का कहना है कि बिहार में फार्मासिस्टों की स्थिति काफी दयनीय है। ड्रग कंट्रोल विभाग ने अब तक सिर्फ गलत और गैर कानूनी तरीके से हजारों ड्रग लाइसेंस नियमों को ताक पर रख कर बनाये हैं। उन्होंने महाराष्ट्र एफडीए का हवाला देते हुए कहा कि अगर बिहार एफडीए सख्ती से केमिस्टों पर लगाम लगाती तो यहां फार्मासिस्टों को बेरोजगारी नहीं झेलनी पड़ती। बिहार में हुए ड्रग लाइसेंस घोटाले पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने मांग की कि राज्य सरकार बगैर फार्मासिस्ट चल रहे सभी दवा स्टोर्स को अबिलम्ब बंद करवाए।