नई दिल्ली। जल्द ही आप सबको महंगी दवाओं से राहत मिलने जा रही है। घरेलू दवा इंडस्ट्री और कारोबारियों ने प्राइस कंट्रोल से बाहर की दवाओं पर ट्रेड मार्जिन 30 फीसदी तक रखने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर सहमति जता दी है। इससे देश में लगभग 80 फीसदी दवाओं की कीमतें घटेंगी। ड्रग प्राइस रेग्युलेटर, फार्मा लॉबी ग्रुप तथा उद्योग संगठनों के बीच हुई बैठक में प्रस्ताव पर सहमति जताई गई है। ट्रेड मार्जन पर 30 फीसदी की ऊपरी सीमा को अन्य प्रस्तावों जैसे प्राइस कंट्रोल वाली दवाओं सहित तमाम दवाओं पर फ्लैट 100 फीसदी ट्रेड मार्जिन पर तवज्जो दी गई।
इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रेजिडेंट दीपनाथ रॉय चौधरी ने कहा कि ट्रेड मार्जिन के रेशनलाइजेशन में हमें कोई परेशानी नहीं है। कैंसर रोग की दवाओं पर भी ट्रेड मार्जिन को 30 फीसदी पर फिक्स किया गया है, वह भी ठीक है। अगर इसे अन्य उत्पादों पर भी लागू किया जाता है, तो इसे चरणबद्ध तरीकों से लागू किया जाना चाहिए। मामले की जानकारी रखने वाले दो सूत्रों ने बताया कि तमाम भारतीय तथा बहुराष्ट्रीय फार्मा लॉबी 30 फीसदी की ऊपरी सीमा से सहमत थे। उन्होंने कहा कि यह मार्जिन स्टॉकिस्टों के प्राइस के 43 फीसदी मार्क-अप के समतुल्य है।
सरकार के इस कदम से जेनरिक डिविजंस के साथ बड़ी फार्मा कंपनियों जैसे सन फार्मा, सिप्ला तथा ल्यूपिन पर असर पडऩे की संभावना है, क्योंकि उन्हें मैक्सिमम रिटेल प्राइस में कटौती करनी पड़ेगी। मैनकाइंड फार्मा के चेयरमैन आरसी जुनेजा ने ट्रेड मार्जिन को 30 फीसदी पर फिक्स करने के प्रस्ताव को उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद बताते हुए कहा है कि इससे इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा। फिलिप कैपिटल के फार्मा एनालिस्ट सूर्य पात्रा ने कहा कि प्राइस कंट्रोल के दायरे से बाहर की दवाओं पर 30 फीसदी का ट्रेड मार्जिन पहले से चलन में है। इसमें रिटेलर का 20 फीसदी और होलसेलर का 10 फीसदी मार्जिन होता है। इसलिए नए प्रस्ताव के लागू होने के दवाओं की कीमतों में ज्यादा कमी नहीं आएगी। दवा कंपनियां जिस दाम पर स्टॉकिस्ट को माल बेचती है और जो दाम ग्राहक से वसूला जाता है, उसके अंतर को ट्रेड मार्जिन कहा जाता है।