जयपुर
प्रदेश के 292 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) के इलाज में गड़बड़ी सामने आई है। इलाज की गुणवत्ता बढ़ाने की मंशा से पीएचसी को पीपीपी मॉडल पर निजी संस्थाओं को देने की निविदा प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसमें ई टेंडरिंग प्रक्रिया तो अपनाई ही नहीं गई। साथ में प्रक्रिया में पहले से विभाग में काम कर रही चंद संस्थाओं को ही तरजीह दी जा रही है। करीब 30 लाख रुपए प्रति अस्पताल के हिसाब से यह पूरा मामला करीब 90 करोड़ रु. का है।

ये चाहिए मानक – अलाभकारी संस्था हो। सरकारी स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम का अनुभव। नियम-शर्तों के अनुसार काम का शपथपत्र। 3 साल में औसत वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ रु.।

बिना आधार इनकार – कुछ संस्थाओं को निविदा प्रक्रिया में उचित दस्तावेज नहीं लगाए जाने के बावजूद सफल बता दिया तो कुछ को छोटी मोटी कमियां बता असफल करार दे दिया गया। 100 से ज्यादा अस्पतालों के संचालन के लिए किसी संस्था ने रुचि नहीं दिखाई। इसके बावजूद नई संस्थाओं को निविदा से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया गया।
गड़बड़ी की शिकायत चिकित्सा मंत्री तक भी पहुंची। इसके बावजूद वित्तीय निविदा नहीं खोली गई। हालांकि अब बताया जा रहा है कि जल्द निविदा खोलने की तैयारी है।
रेफरल के रूप में खोज…

विभाग की सफल व असफल अस्पतालों की सूची से सामने आया कि अधिकांश संस्थाएं पहले से बड़ा अस्पताल चला रही या जुड़ी हैं। ये ऐसे अस्पताल ढूंढ़ रहे हैं, जहां अपने से बड़े शहरी अस्पतालों के लिए मरीज रेफर किए जा सके। ऐसे में दूरदराज के अस्पतालों में संस्थाएं रुचि नहीं दिखा रही।
गुणवत्ता का मजाक – विभाग ने पीएचसी का संचालन गुणवत्तापूर्ण संस्थाओं को देने के लिए मजबूत मार्र्किंग पैटर्न बनाया था। इसमें सुविधाएं देख नंबर दिए थे पर जो सूची दी गई है, उसमें कुछ संस्थाएं इस पैटर्न पर खरी नहीं उतर रही।

आरएफपी संलग्न नहीं, किया बाहर – डॉ.हरीश-पायल माथुर, अनर कौर समिति, विकल्प इंडिया, कृष्णा हॉस्पिटल, सामरिया नर्सिंग होम, वर्धमान महिला सेवा, प्रताप अध्ययन सहित कई को रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) संलग्न नहीं करने के बहाने बाहर किया जबकि निविदा के समय ये मांगा ही नहीं ?