नई दिल्ली: जैसे कुछ माह पहले अचानक कंबिनेशन दवा बैन करने का निर्णय केंद्र सरकार ने जब लिया था तो दवा उद्योग/फार्मा इंडस्ट्री में हाहाकार मच गया था, ठीक वैसे ही अफरा-तफरी की स्थिति दवा बाजार में उस दिन से फिर पैदा हो गई, जिस दिन अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर 500, 1000 के नोट आधी रात से अमान्य होने का फरमान जारी किया। दिल्ली के भागीरथ पैलेस और उत्तर प्रदेश के चुनिंदा शहरों से बिना बिल दवा खरीदकर चांदी कूटने वाले, चाहे बड़े दवा व्यापारी हों या छोटे केमिस्ट, सबकी जड़े हिल गई हैं।
बेशक केंद्र सरकार ने जनहित को ध्यान में रखते हुए 14 नवंबर तक दवा क्षेत्र में अमान्य 500, 1000 के नोट लेने की इजाजत दे रखी है, लेकिन इन नोटों को बैंक में जमा करवाने से पहले दवा दुकानदार को दिन भर की सेल के पूरे कागज, असली बिल, डॉक्टर की पर्ची आदि भी मेनटेन करनी होगी, तभी यह आमन्य राशि मान्य होगी। ड्रग विभाग के अधिकारियों की मानें तो दवा दुकानदार के फार्मासिस्ट लाइसेंस होने की जानकारी भी मांगी जा सकती है। यदि बिना लाइसेंस वाला केमिस्ट दवा सेल के रूप में 500, 1000 के नोट लेकर बैंक पहुंचता है तो कानूनी घेरे में फंस सकता है, चाहे कितने ही वर्षों से दवा बेच रहा हो।
गौरतलब है कि दवा क्षेत्र में अघोषित पूंजी के बड़े निवेश की चर्चाएं खूब गर्म रहती है। अकसर बड़े दवा कारोबारी से लेकर छोटे केमिस्ट पर किराए का लाइसेंस के सहारे बिना बिलसेल-परचेज के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। 9 नवंबर तक तो इस पवित्र पेशे में यह यह काला धंधा और इसमें संलिप्त लोग खूब फल-फूल रहे थे, लेकिन पिछले तीन दिनों में ही इस तरह के दवा दुकानदारों की हंसी फीकी हो गई। 500, 1000 के पुराने नोटों की मोटी-मोटी गड्डियों को बैंक में ले जाने का डर पैदा हो गया, क्योंकि जरूरी बिल व अन्य दस्तावेज नहीं है। रिटेल केमिस्ट स्थानीय थोक दवा विक्रेताओं से पुरानी तारीखों में बिल देने का दबाव बना रहे हैं, ताकि 500,1000 की ज्यादा सेल को किसी तरह बैंक में जमा करा सकें, लेकिन थोक दवा विक्रेता बिल देने से साफ इनकार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भी तो जवाब देना पड़ेगा। फिलहाल दवा बाजार की सेहत बिगड़ रही है और सरकारी मरहम की गुंजाइश भी नहीं लग रही, क्योंकि दिक्कत उन्हीं लोगों को हैं, जिनमें खोट है।
प्राइवेट क्लीनिक, नर्सिंग होम के आसपास ज्यादा आफत
दवा उद्योग से जुड़े लोगों की मानें तो, बड़े-बड़े निजी अस्पताल, नर्सिंग होमों की चारदीवारी के करीब केमिस्टों को इस आफत से जूझना पड़ सकता है क्योंकि यहां बिकने वाली दवाओं का हिसाब-किताब और केमिस्टों से अलग होता हैं। मरीज दो रुपये की दवा 10 रुपये में खरीदने को मजबूर है। पता चला है कि विशेषज्ञ डॉक्टरों के क्लीनिक, नर्सिंग होम के बाहर दवा या उपकरण बेचने वाला केमिस्टों में ही बिलों को लेकर मारामारी है। किसी खास रोग से जुड़ी दवाई या उपकरण बेचने वाले केमिस्ट अब बिलों में सब तरह की दवा बिक्री दर्ज करवा रहे हैं।