भारत में एचआईवी प्रभावित बच्चों की जीवन-रक्षक दवा की किल्लत
 
नई दिल्ली। देश में एचआईवी पीडि़त बच्चों की जीवनरक्षक दवा लोपैनेविर सिरप के इकलौते निर्माता सिप्ला ने इसका उत्पादन बंद कर दिया है। सिप्ला ने यह कदम सरकार द्वारा बकाया नहीं चुकाए जाने के चलते लिया। हालांकि एचआईवी प्रभावित बच्चों के लिए यह दवा बेहद जरूरी है। नामी अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, एचआईवी दवाओं के उत्पादन में सिप्ला कंपनी का बहुत नाम है। 2015 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एड्स, टीबी जैसी कई बीमारियों के लिए काम करने वाली संस्था ग्लोबल फंड ने सिप्ला को एचआईवी/एड्स के इलाज में काम आने वाली एंटी रेट्रो वायरल (एआरवी) दवाओं के लिए 18.9 करोड़ डॉलर (करीब 1,170 करोड़ रुपये) से अधिक का ऑर्डर दिया था।
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 2014 में भेजे गए माल के एवज में भुगतान न मिलने के बाद भी सिप्ला ने सरकारी टेंडरों में भाग लेना बंद नहीं किया था। अब इस स्थिति में स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी को स्थानीय बाजार से दवा खरीदने के निर्देश दिए हैं। मंत्रालय के अपर सचिव अरुण पांडा के मुताबिक, एक इमरजेंसी टेंडर निकाला है, साथ ही स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटियों और राज्य सरकारों से स्थानीय बाजार से दवा खरीदने को भी कहा है।  हालांकि सिरप का निर्माण न होने की स्थिति में खुदरा विक्रेताओं के पास भी दवा उपलब्ध नहीं है। एड्स के इलाज में काम कर रही संस्था डीएनपी प्लस के पॉल का कहना है कि पूरे देश के किसी भी राज्य में ऐसा कोई नहीं जो यह दवा बनाता हो। जब इसका इकलौता निर्माता ही इसे नहीं बना रहा है तो फिर कैसे यह दवा स्थानीय बाजार में मिल सकती है?