स्वास्थ्य नीति निजी हाथों में सौंपना चाहता था आयोग लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनकी नहीं चलने दी
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “बेबी नीति आयोग नई स्वास्थ्य नीति को लेकर सदमे में है। उसने हठ किया था कि लोगों की सेहत सरकार का सिरदर्द नहीं होना चाहिए। नीति आयोग चाहता था कि बीमार लोगों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए। उन्हें लालची निजी क्षेत्र की लूट खसोट का शिकार होते रहने देना चाहिए। सरकार की नीतियों के निर्धारण के लिए बने विचार मंच का यह भी मानना है कि सेहत पर सरकारी खर्च पैसे की बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं है। आयोग “राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन” पर ताला लटकाने के पक्ष में है।

नीति आयोग के ये अनैतिक विचार राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के जारी होने के पहले इनके पहलुओं पर बहस के दौरान सामने आए। बहस में नीति आयोग के अधिकारीगण निजी क्षेत्र के पैरोकार निकले। वे नहीं चाहते थे कि केंद्र सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को दुरुस्त कर कॉरपोरेट अस्पतालों के लिए मरीजों का रास्ता बंद न करे। संभावना कि अगर सरकारी प्राथमिक केंद्रों का कायाकल्प हो गया तो फिर देश के 80 प्रतिशत लोगों को कारपोरेट अस्पतालों व निजी नर्सिग होम में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और उनकी लूट खसोट रुक जाएगी। ब्रिटेन में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की वजह से ऐसा ही हुआ है। अभी तो भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बड़ी दयनीय है जिसे केंद्र सरकार ने नई स्वास्थ्य नीति के जरिए दुरुस्त करने का वादा किया है।
मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने  मेडीकेयर न्यूज को बताया कि जब नीति आयोग के अधिकारियों के साथ नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को अंजाम देने को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों की बातचीत चल रही थी तो नीति आयोग का निजी क्षेत्र प्रेम खुल कर सामने आया। अभी केंद्रीय स्वास्थ्य नीति की भले ही चहुं ओर प्रशंसा हो रही हो लेकिन नीति आयोग अपनी मंशा में सफल हो गया होता तो यह बेहद लचर नीति सामने आती । अगर इतनी अच्छी स्वास्थ्य नीति बनी है तो इसका सारा श्रेय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के तर्क के साथ मजबूती से खड़े रहे। नीति आयोग के अधिकारीगण सेहत के सार्वजिनक क्षेत्र को कबाड़ा साबित करने पर आमादा थे। उनका कहना था कि सरकार स्वास्थ्य सेवाएं आज तक विश्वसनीय भूमिका नहीं निभा पाई है। वे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को भी बंद करने की पैरवी कर रहे थे। उनका कहना था कि मिशन पूरी तरह नकारा साबित हुआ है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने  मेडीकेयर न्यूज से कहा कि आज अगर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नहीं होता तो देश के लाखों गरीब मरीजों को मरने के सिवा और कोई चारा नहीं रहता। पूरे देश में एम्स स्थापित करने की योजना अगर पूरी हो गई और नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति ईमानदारी से अक्षरश: लागू हो गई तो फिर निजी क्षेत्र के लिए मनमानी करने का रास्ता पूरी तरह से बंद  हो जाएगा। यही वजह है कि निजी क्षेत्र लॉबी नीति आयोग के जरिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के पूरे नैरेटिव (खाका) को विकृत करने की कोशिश में थी लेकिन उन्हें असफलता हाथ लगी। यह देश के आम लोगों के हित में बन पाया।
सूत्रों ने बताया कि इतनी अच्छी स्वास्थ्य नीति बनाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को एड़ी चोटी एक करना पड़ा और अंतत: वे नीति आयोग के क्रूर जबड़े से स्वास्थ्य नीति को बचा पाए। स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम ने आयोग को खरी खरी सुनाते हुए टका सा जबाव दिया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की रीढ़ तो सरकार ही रहेगी। देश की सेहत निजी क्षेत्र के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती है। इसलिए सेहत पर खर्च से सरकार अपना हाथ कतई नहीं खींच सकती। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वस्थ्य भारत एवं यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज ( यूएचसी, सबको उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवा ) के लक्ष्य को हासिल करना है तो सरकार को स्वास्थ्य सेवा का सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर ( भागीदार)  बने रहना जारी रखना पड़ेगा। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय सेहत मिशन का भी यह कहते हुए भरपूर बचाव किया कि मिशन कई मामलों में बेहद कामयाब रहा है । शिशु एवं गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर में जो खासी कमी आई है वह मिशन का ही कमाल है।
       स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने कहा -सरकारी खर्च को बरकरार रखने और उसे बढाने के अपने तर्क को अंजाम तक पहुंचाने में स्वास्थ्य मंत्रालय को वैसे ही “दर्द” से गुजरना पड़ा जैसे प्रसव के दौरान किसी स्त्री को गुजरना पड़ता है। तभी हमें नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के रूप में एक स्वस्थ बेबी मिली है।   
नई स्वास्थ्य नीति पर बारीक नजर डालें तो एक तरह से यह सेहत को एक बुनियादी अधिकार की शक्ल देने में भी कामयाब रही है। एक अरसे से यह मांग हो रही है कि स्कूल शिक्षा की तरह ही स्वास्थ्य को भी मौलिक अधिकार की श्रेणी में डाला जाना चाहिए। नई स्वास्थ्य नीति बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले एक अधिकारी ने कहा- सेहत को बुनियादी अधिकार तो हमने बना दिया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को दुरुस्त करने का मतलब यही है।