भोपाल। एंटीबायोटिक दवाओं के गलत इस्तेमाल से इनका असर खत्म या फिर कम होता जा रहा है। इनका दुरुपयोग रोकने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने एंटीबायोटिक पॉलिसी बनाई है। इसके तहत तीन साल का एक्शन प्लान (कार्ययोजना) तैयार की गई है। स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट की मौजूदगी में यहां प्रशासन अकादमी में कार्ययोजना जारी होने के साथ ही इस पर अमल भी शुरू हो गया है। इसके साथ एंटीबायोटिक पॉलिसी बनाने वाला मप्र राज्य केरल के बाद देश का दूसरा राज्य बन गया है। स्वास्थ्य मंत्री सिलावट ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग रोकने के लिए पशुपालन, मछली पालन, कृषि अन्य विभागों का भी सहयोग लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि तय कार्ययोजना के अनुसार काम किया जाए। तीन साल के भीतर एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग पूरी तरह से रोका जाना चाहिए। कार्य योजना जारी करने के पहले कृषि, पशुपालन, मछली पालन अन्य संबंधित विभागों के विशेषज्ञों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दौरान उन्हें एंटीबायोटिक दवाओं के कम हो रहे असर की जानकारी दी गई। मौके पर प्रमुख सचिव स्वास्थ्य डॉ. पल्लवी जैन गोविल, एनएचएम की एमडी छवि भारद्वाज व एनसीडीसी के डायरेक्टर डॉ. सुजीत सिंह मौजूद थे। एनएचएम के संयुक्त संचालक (क्वालिटी) डॉ. पंकज शुक्ला ने बताया कि मप्र पशुपालन विभाग के 2017 के एक अध्ययन में पता चला है कि पोल्ट्री फार्मों में मुर्गे-मुर्गी को मोटा करने, बड़ा अंडा देने, गायों का दूध बढ़ाने व बीमारियों से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। मांस, गोबर व दूध के जरिए यह एंटीबायोटिक इंसानों में पहुंच रही है, जिससे असर कम हो रहा। उन्होंने बताया कि कुल एंटीबायोटिक्स में करीब 48 फीसदी जानवरी में उपयोग हो रही है। नेशनल सेंटर पर डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के डायरेक्टर डॉ. सुजीत सिंह ने कहा कि वह एनसीडीसी का रीजनल सेंटर भोपाल में बनाना चाहते हैं। इसके लिए दो एकड़ जमीन की जरूरत है। इस पर मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि राज्य सरकार उनकी हर संभव मदद करेगी। बता दें कि सेंटर बनाने के लिए राज्य सरकार ने दो साल पहले ईदगाह हिल्स में जमीन देने की बात कही थी, लेकिन बाद में इस मामले में सरकार ने चुप्पी साध ली। यह सेंटर बनने के बाद प्रदेश में संक्रामक बीमारियों की निगरानी, जांच व नियंत्रण में मदद मिलेगी। यह कार्य योजना कुछ इस तरह बनाई गई है। मेडिकल स्टोर से डॉक्टर के पर्चे के बिना दवा न मिले, इसके लिए सख्त नियम बनाए जाएंगे। अमानक व खतरनाक दवाओं की बिक्री पर सख्ती से रोक लगाई जाएगी। दवाओं की बिक्री की मोबाइल एप से निगरानी की जाएगी। निजी व सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों के पर्चों के कुछ नमूने लेकर ऑडिट कराई जाएगी। चिकन, मटन, अंडा, दूध आदि में एंटीबायोटिक्स की मात्रा पता करने व निगरानी की व्यवस्था की जाएगी। एक साल में सभी सरकारी अस्पतालों की माइक्रोबायोलॉजी लैब को और साधन संपन्न बनाया जाएगा, जिससे कल्चर टेस्ट हो सकें। कल्चर टेस्ट में पता चलता है किस बैक्टीरिया में कौन सी दवा असर करेगी। सभी मेडिकल कॉलेज व हर जिले में एक सरकारी लैब को एनएबीएल (नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर लेबोरेट्रीज) मापदंड पर लाया जाएगा। एक साथ कई एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल, तय डोज से ज्यादा एंटीबायोटिक देना, दवाएं खाना बीच में ही छोड़ देना, बिना एंटीबायोटिक दवाओं के ठीक होने वाली बीमारियों में भी एंटीबायोटिक देना, पशुओं के खाने में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल, आदि के चलते एंटीबायोटिक बेअसर हो रहीं हैं।