रोहतक। पाउडर और लिपस्टिक जैसे कॉस्मेटिक सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल कर अपनी खूबसूरती में चार चांद लगाने वाली महिलाओं के लिए खास खबर है। इन कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल उन महिलाओं को बहुत महंगा पड़ सकता है जिन्हें गेहूं के अधिक उपभोग से होने वाली एलर्जी यानी सीलियक डिजीज है। दरअसल, जिन कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में गेहूं में पाया जाने वाला तत्व ग्लूटन ज्यादा मात्रा में होता है, वह शरीर के अंदर जाने पर रोग को कंट्रोल नहीं होने देता। रोहतक पीजीआई में 5 वर्षों में आए 1 हजार मरीजों पर किए शोध में इसका खुलासा हुआ। तमाम उपाय के बाद भी जब 570 महिलाओं को राहत नहीं मिली तो कॉस्मेटिक प्रोडक्ट चेक किए गए। उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कॉस्मेटिक प्रोडक्ट खासकर लिपस्टिक में ग्लूटोन था। इनके इस्तेमाल में कमी लाने पर पीडि़त महिलाओं को राहत मिली। यह बीमारी सर्वाधिक बच्चों में पाई जाती थी। अब बड़े बुजुर्गों में भी पाई जा रही है। पीजीआई में आने वाले मरीजों में 21 से 80 वर्ष के अब 52 फीसदी मरीज हैं। पीजीआई रोहतक में चल रहे सीलियक क्लीनिक के चिकित्सकों ने पिछले 5 साल में गेहूं की एलर्जी के मरीजों पर रिसर्च की। 1000 मरीजों में 57 फीसदी यानी 570 महिलाओं व 43 फीसदी पुरुष में यह बीमारी पाई गई। विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं में लसलसा पदार्थ यानी प्रोटीन (ग्लूटन) होता है। जब पेट में यह आसानी से नहीं पच पाता, तब जमना शुरू हो जाता है। बाद में पेट संबंधी बीमारियों की वजह बन जाता है। यह इतना जहरीला हो जाता है कि छोटी आंत को प्रभावित करने लगता है। पीजीआई के सीलियक क्लीनिक में रोजाना संदेह के आधार पर 20 से 25 मरीजों में गेहूं की एलर्जी की जांच की जाती है, जिसमें एक मरीज में पुष्टि होती है। करीब 8 हजार रुपए में होने वाली जांच पीजीआई में फ्री में होती है। पेट में दर्द, कब्ज, खून की कमी, कैल्शियम की कमी, त्वचा का काला पडऩा, वजन तेजी से घटना, बालों का झडऩा, थकान रहना, खून की कमी, उल्टी आते रहना, चिड़चिड़ापन, सुस्ती, याददाश्त कमजोर और हड्डियों में दर्द आदि इसके लक्षण माने जाते हैं। 5 फीसदी लोगों में शुगर, थायरायड की बीमारी गेहूं की एलर्जी से पाई गई है। सबसे बड़ा लक्षण तो मरीज की ग्रोथ रुक जाना है। अगर इस बीमारी का इलाज समय पर नहीं किया जाए तो मरीज में ब्लड कैंसर और आंत के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। महिलाओं में बांझपन जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।