सोलन। घरेलू सकल उत्पाद (जीडीपी) की दर में देश में 3 फीसदी गिरावट आने से उद्योग मंदी की मार झेल रहे हैं। लोगों के स्वास्थ्य के लिए सबसे आवश्यक एवं मूलभूत फार्मा सेक्टर भी मंदी की मार झेल रहा है। वर्ष 2008-09 में अंतरराष्ट्रीय मंदी छाने के बावजूद फार्मा उद्योगों को कोई फर्क नहीं पड़ा था, लेकिन इस बार फार्मा उद्योग स्वयं बीमार होकर रह गए हैं। प्रदेश में करीब 750 फार्मा उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। फार्मा उद्योगों की स्थापना के बाद एशिया में सर्वाधिक 40 फीसदी दवाओं का निर्यात करने में हिमाचल ने अलग पहचान बनाई है। फार्मा हब होने के बावजूद आज उद्योग मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। इसका मुख्य कारण मार्केट में कैशफ्लो कम होना, नामी ऑनलाइन कंपनियों से कैशलेस ऑर्डर प्लेस करना, औद्योगिक पैकेज खत्म होना, फार्मा सेक्टर को बैंकों से आर्थिक मदद न मिलना है। हिमाचल दवा निर्माता संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजेश गुप्ता का कहना है कि पिछले एक साल से फार्मा उद्योग मंदी के हालात से जूझ रहे हैं। फार्मा उद्योगों सहित एमएसएमई उद्योगों पर भी मंदी की मार पड़ रही है। हिमाचल दवा निर्माता संघ के सलाहकार एचएन सिंगला का कहना है कि राष्ट्रीय उपभोग (नेशनल कंजप्शन) कम होने से खपत में कमी आने से मंदी छा गई है। ऑनलाइन कंपनियों के पीछे लोग भाग रहे हैं। कैशफ्लो कम हो गया है। कैशलेस सुविधा होने से बड़ी कंपनियों के पीछे लोग भाग रहे हैं।
बड़ी कंपनियों से उत्पाद लेने के कारण यहां जा रहा पैसा बाहर जा रहा है। ऑनलाइन खरीद को बढ़ावा मिलने के कारण उद्योगों में मंदी छा गई है। बीबीएनएआई के पूर्व अध्यक्ष शैलेष अग्रवाल का कहना है कि दवा तो व्यक्ति की सबसे अधिक जरूरत है, लेकिन हैरत की बात है कि इस बार फार्मा उद्योगों में भी मंदी छाई है।