बरेली। डायबिटीज की दवाएं दस दिसंबर से सस्ती हो गई हैं। तीस रुपये वाली मधुमेह की दवा का रेट अब तीन रुपये हो गया है। लेकिन ग्राहकों को अभी बाजार में सस्ती दवाएं कम ही मिल रही हैं। वजह है पुराना स्टॉक। सस्ती दवाओं की उपलब्धता जानने के लिए बाजार जाने पर पता चला कि अधिकांश मेडिकल स्टोर पर पुराना स्टॉक ही बेचा जा रहा है। जिसके चलते ग्राहकों को सस्ती दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। हालांकि दवा की कुछ दुकानों पर नया स्टॉक आ चुका है।
पिछले पांच सालों से नोवार्टिस कंपनी पचास एमजी की विल्डेग्लिप्टिन बना रही थी। इसकी कीमत प्रति टेबलेट करीब 30 रुपये थी, जिसके रेट दस दिसंबर से तीन रुपये हो गए हैं। जानकार बताते हैं कि नौ दिसंबर को कंपनी का पेटेंट खत्म हो चुका है, जिसके बाद देश की बीस से अधिक कंपनियों ने इसे बाजार में उतार दिया है। यही कारण है कि टेबलेट के दामों में 90 फीसदी तक की गिरावट आई है। वहीं, डायबिटीज की एक अन्य टेबलेट मैटफॉर्मिन, जो अब तक 27 रुपये प्रति टेबलेट थी, वह अब वह चार रुपये प्रति टेबलेट रिलेट में रोगियों को मिल रही है। लेकिन ग्राहकों को इसका पूरा फायदा नहीं मिल रहा है। इस मुद्दे पर बरेली महानगर केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष दुर्गेश खटवानी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि दुकानों पर नया स्टॉक आ चुका है। कुछ जगहों पर पुराना स्टॉक हो तो उन्हें पता नहीं। ग्राहक मेडिकल स्टोर पर डायबिटीज की सस्ती दवा की मांग करें। दवा के दाम गिरने से एक डायबिटीज रोगी को करीब 16 सौ रुपये का फायदा होगा। वहीं कुछ मरीजों को इससे भी अधिक का फायदा संभव है। एक अनुमान के मुताबिक अब तक 30 रुपये वाली टेबलेट एक रोगी दिन में दो बार खा रहा था, जिसके लिए उसे महीने में 1800 रुपये खर्च करने पड़ रहे थे, लेकिन अब उसे मात्र 180 रुपये ही खर्च करने होंगे। वहीं, अगर यह दवा होलसेल मार्केट से खरीदी जाएगी तो खर्च और भी कम हो जाएगा। दवा कंपनी जिस रोग पर रिसर्च करती है। उनकी दवा आने पर भारत सरकार से पांच साल का पेटेंट ले लेती है। फिर उस दवा को पांच साल तक सिर्फ एक ही कंपनी बनाती है और मनचाहे दामों पर उसकी बिक्री करती है। अब तक यह दवा प्राइवेट के अलावा सभी सरकारी अस्पतालों में भी प्रयोग हो रही थी। इसका देश भर में करीब चौदह हजार करोड़ रुपये का व्यापार था। अब नौ दिसंबर को पेटेंट खत्म होने के बाद इस दवा को करीब 18-20 कंपनियों ने बनाकर बाजार में सस्ते में उतार दिया है। बरेली महानगर केमिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष दुर्गेश खटवानी का कहना है कि पहले दवा पर पेटेंट का नियम नहीं था। इसे फिर खत्म किया जाए, इसके लिए मैने बरेली महानगर केमिस्ट एसोसिएशन की ओर से भारत सरकार को पत्र लिखा है। यदि बहुत जरूरी हो तो सरकार इसकी पांच साल की अवधि को घटाकर एक साल कर दे। इतने समय में भी कंपनियां हजारों करोड़ों रुपये कमा लेंगी।