मुंह मांगे दामों पर ब्लड बेचकर कमाई करने में जुटे खून के सौदागर  
पीलीभीत। जिले में ब्लड सप्लाई का गेम खूब खेला जा रहा है। डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम होने से यह ब्लड का धंधा करने वालों को तो सुकून पहुंचा रहा है लेकिन मरीजों को गम दे रहा है। आंकड़ों के अनुसार जिलेभर में खून के इस ‘काले खेल’ का टर्न ओवर करीब तीन करोड़ रुपए है। बता दें कि जिले में हर माह करीब दो हजार ब्लड यूनिट की जरूरत पड़ती है। इसमें से करीब छह सौ यूनिट ब्लड ही जरूरतमंदों तक सीधे रास्ते पहुंच पाता है।
     डिमांड के अनुपात में सप्लाई कम होने से ही खून का यह व्यापार खूब फलफूल रहा है। जिले में करीब डेढ़ दर्जन हॉस्पिटल ऐसे हैं, जहां सर्जरी के लिए ब्लड की जरूरत पड़ती है। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अनुसार एक गर्भवती का सीजेरियन से प्रसव के लिए कम से कम दो यूनिट ब्लड चाहिए। इस तरह शहर के हॉस्पिटल में 960 यूनिट ब्लड चाहिए। जबकि जिले के दोनों ब्लड बैंकों से औसतन छह सौ यूनिट ब्लड ही मिल पाता है। वहीं दोनों ब्लड बैंक जिले के अलावा पास-पड़ोस के जिलों के मरीजों को भी ब्लड देने का दावा करते हैं। अब इतना ब्लड कहां से आता है? इससे स्पष्ट है कि खून का काला खेल जिले में बड़े स्तर पर खेला जा रहा है।
    दरअसल, ब्लड बैंकों में निगेटिव ब्लड ग्रुप की कमी होती है। वर्तमान में सरकारी ब्लड बैंक में ओ निगेटिव का एक यूनिट ही शेष है। स्वास्थ्य विभाग के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसके जरिए दूसरे जिलों के बैंक से ब्लड मंगाया जा सके। ऐसे में खून के व्यापारी मनमाने दामों पर खून का सौदा करते हैं। उधर, ब्लड को इक_ा करने वाला बैग आम लोगों के लिए प्रतिबंधित है। इसे ब्लड बैंक के लाइसेंसधारी की मांग पर ही दिया जाता है। बैग पर बाकायदा आईडी नंबर अंकित होता है। पिछले दिनों निजी अस्पताल से जब्त किए गए बैग पर किसी तरह का आईडी नंबर अंकित नहीं था। ब्लड बैंक से जुड़े लोगों का कहना है कि ब्लड के उपयोग के बाद बैग को नष्ट करने का नियम है। जबकि अमूमन उसे डस्टबिन में डाल दिया जाता है। इससे दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है।
हर ब्लड बैग की होती है आईडी
इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. महावीर ङ्क्षसह का कहना है कि हमारे यहां से हर माह औसतन दो सौ ब्लड यूनिट की सप्लाई होती है। डोनर की काउंसिङ्क्षलग कराने के बाद ही ब्लड दिया जाता है। बैंक से जो ब्लड यूनिट जारी होती है, उसका प्रमाण होता है। प्रत्येक ब्लड बैग की अपनी आइडी होती है। इससे गड़बड़ नहीं हो पाती है। वहीं, ब्लड बैंक के काउंसलर नायब रसूल ने बताया कि ब्लड बैंक में भी हर माह कुछ फर्जी डोनर  आ जाते हैं। काउंसिङ्क्षलग के जरिए ही ऐसे लोगों को अलग किया जाता है। ब्लड देने वालों के हाथों पर ध्यान से देखने पर निशान नजर आ जाते हैं।
सीसीटीवी से रखते हैं नजर
जीवन रेखा ब्लड बैंक की डॉ. नीलम अग्रवाल का कहना है कि हमारे यहां हर माह औसतन 450 यूनिट ब्लड सप्लाई किया जाता है। ब्लड देने से पहले मांग पत्र, सेंपल, डोनर के बारे में गहराई से छानबीन की जाती है। कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं। हम अपने यहां ब्लड बैग लीक होने या इस्तेमाल के बाद आने सामने ही नष्ट कराते हैं।
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