आयुर्वेद में सेक्स एक खास मुकाम रखता है। आयुर्वेद सात टिश्यू (धातुओं) को मान्यता देता है। ये सात टिश्यू हैं- प्लाज्मा, ब्लड, मसल्स, फैट, बोन, बोनमैरो/नर्व और रीप्रोडक्टिव टिश्यू. हालांकि सेक्स की सबसे अधिक चर्चा रीप्रोडक्शन या प्रजनन के संदर्भ में की जाती है, फिर भी एक हेल्दी सेक्स लाइफ हासिल करने का महत्व अपनी जगह है। अधिकतर जब सेक्शुअल हेल्थ की बात आती है, तो सबका ध्यान मॉर्डन मेडिसिन की तरफ जाता है, लेकिन इस बारे में आयुर्वेद जैसी प्राचीन ज्ञान पद्धति क्या कहती है, आइए जानते हैं जीवा आयुर्वेद के निदेशक डॉ प्रताप चौहान से।
उनका कहना है कि आयुर्वेद आधुनिक विज्ञान से काफी अलग है और सेक्स के प्रति ज्यादा होलिस्टिक (बजाय विशुद्ध रूप से शरीर पर केंद्रित होने के) दृष्टिकोण रखता है। आयुर्वेद इसे ज्यादा संपूर्णता से समझाता है। यह सिर्फ सेक्स या पोजीशन के बारे में नहीं है। , बल्कि इस बारे में भी बताता है कि आपको सेक्स से पहले और बाद में क्या करना चाहिए। ताकि जो भी रिप्रोडक्टिव एनर्जी खत्म हो गई है, वह आपकी सेहत पर कोई असर डाले बिना बहाल हो जाए। कुल मिलाकर यह संतुलन का मामला है. जैसे हम अपनी बाकी इंद्रियों को संतुलित तरीके से नियंत्रित और इस्तेमाल करते हैं। यही बात सेक्शुअल एनर्जी पर भी लागू होती है। इनका न तो जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया जाना चाहिए। न ही जरूरत से कम। आयुर्वेद जिस संतुलन को बनाए रखने की वकालत करता है, उसे कायम रखने के तरीके भी बताता है। खान-पान और लाइफ स्टाइल काफी फर्क ला सकते हैं।
खानपान को लेकर कुछ सुझाव यहां दिए जा रहे हैं –
क्या ना खाएं: बहुत ज्यादा नमकीन, खट्टा और मसालेदार फूड, जंक फूड, सिरका और मिर्चे की सॉस, तला हुआ खाना, रिफाइंड शुगर, खट्टे फलों की अत्यधिक मात्रा
क्या खाएं: रोजाना शुद्ध दूध, शहद, गाय के दूध का घी, उपयुक्त मात्रा में अखरोट, बादाम और काजू जैसे पौष्टिक मेवे, ताजे फल, खासकर केले जैसे मीठे फल, कद्दू और सूरजमुखी के बीज।
एक हेल्दी डाइट लेने से, सेक्शुअल धातु को पुनर्स्थापित, पुनर्जीवित और विकसित किया जा सकता है, खासतौर से शरीर का आदर्श वजन सुनिश्चित करके। मोटापा, सुस्ती और स्टेमिना की कमी सभी परेशानियां पैदा कर सकती है। डेस्क जॉब्स से रीढ़ को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे डिस्क प्रॉब्लम और लोवर डिस्क पेन की समस्या हो सकती है। रीढ़ की मजबूती बहुत जरूरी है , स्टेमिना बनाने के लिए नियमित कसरत, तेल मालिश, सही आसन और हेल्दी डाइट- एक साथ मिलकर सेक्शुअल हेल्थ समस्याओं से बचा सकते हैं।
डॉ चौहान कहते हैं कि इनमें ज्यादातर सुझाव आम हैं। सेक्स समस्याओं या इरेक्टाइल डिसफंक्शन (स्तंभन दोष) और लो लिबिडो (कामेच्छा की कमी) जैसे मामलों में, इस बीमारी के कारण को समझने के लिए सही आयुर्वेदिक सलाह की जरूरत होगी। ऐसे मामलों में, हर जगह लागू हो सकने वाला कोई एक फार्मूला नहीं है। लो लिबिडो के बहुत से कारण हो सकते हैं, मोटापा, एसिडिटी, तनाव या दबाव ये सभी काफी महत्वपूर्ण कारक हैं। मानसिक स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जितना शारीरिक स्वास्थ्य. इसलिए हम जरूरत के मुताबिक इलाज करते हैं और उसी के मुताबिक दवा लिखते हैं।
डाइट और लाइफस्टाइल को दिया जाने वाला महत्व इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि रीप्रोडक्टिव टिश्यू (प्रजनन ऊतक) को धातु के क्रम में सातवें स्थान पर रखा गया है। चूंकि यह टिश्यूज में अंतिम है, इसलिए उस तक पोषण पहुंचने में अधिक समय लगता है। वह बताते हैं, “आप आज जो खा रहे हैं, उसे आपके सातवें टिश्यू का पोषण करने में तकरीबन 30 दिन लग सकते हैं। इसे बनने में समय लगता है, इसलिए इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। सही भोजन और व्यायाम यह सुनिश्चित कर सकता है कि सभी टिश्यू ठीक से विकसित हों। आप आखिरी टिश्यू तक पहुंचने के लिए पहले छह को छोड़ नहीं सकते हैं। ”
आयुर्वेद में ऋतुओं की प्रासंगिकता सेक्शुअल हेल्थ को लेकर एक दिलचस्प नजारा पेश करती है। जैसा कि डॉ चौहान बताते हैं, “सेक्शुअल एक्टिविटी का दोहराव बाहर के तापमान के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। गर्मी के मौसम में, 15 दिन में एक बार हो सकता है। अपेक्षाकृत ठंडे दिनों में, संख्या बढ़ सकती है. तर्क एकदम सीधा है। जब बाहर गर्मी होती है, तो शरीर अंदर से ठंडा हो जाता है, मेटाबॉलिज्म धीमा होता है और नतीजन एनर्जी और ताकत भी उच्चतम स्तर पर नहीं होती है। अपने रीप्रोडक्टिव टिश्यू को बर्बाद करना ठीक नहीं है क्योंकि इसकी बहाली में अधिक समय लगेगा। सर्दियों में इसका उल्टा होता है। शरीर का एनर्जी और मेटाबॉलिज्म स्तर ऊंचा होता है।” w
”सर्दी ऐसा समय है जब हम ज्यादा सूखे मेवे खाते हैं और ज्यादा समय (फिर से कह दें, अधिक ताकत के कारण) तक काम करते हैं।
लेकिन अब हम वातानुकूलित वातावरण में रहते हैं, अपने एसी और हीटर के साथ। क्या वह बात अभी भी लागू होती है? हां होती है, बाहरी वातावरण का शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है, इसलिए प्रकृति और मौसम का सम्मान करें। ”