नई दिल्ली: वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की प्रयोगशाला इंस्टिट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (आईएमटेक) ने सभी तरह के क्षय रोग (टीबी) के लिए कारगर दवा विकसित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य क्षेत्र की वैश्विक कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की मौजूदगी में आईएमटेक के निदेशक डॉ. अनिल कौल और जॉनसन एंड जॉनसन के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी पॉल स्टोफल ने किए।
नई दवाएं पांच से 10 साल में बाजार में पेश करने की उम्मीद है। डॉ. स्टोफल ने इस बात से सहमति जताई कि भारतीय संस्थान के साथ साझेदारी में दवा का विकास करने से इसमें समय और लागत की बचत होगी। कहा जा रहा है कि यह दुनिया की पहली ऐसी परियोजना होगी जिसमें हर तरह के टीबी के इलाज में सक्षम दवा विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
डॉ. डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि भारत जैसे देश में टीबी के लिए नई दवा का विकास और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां अब भी गरीबी, कुपोषण और गंदगी की समस्या है। वैज्ञानिकों के सामने मुख्य चुनौती ऐसी दवा विकसित करना है जिसे कम से कम दिनों तक खाने की जरूरत हो। उन्होंने कहा कि सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्तकरने का लक्ष्य रखा है। टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिससे दूसरी बीमारियों का इलाज और जटिल हो जाता है।
डॉ. कौल के मुताबिक, टीबी के विषाणु दवा के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर लेते हैं। इससे होने वाली बीमारियों को एमडीआर टीबी, एक्सडीआर और एक्सएक्सडीआर टीबी के नाम से जाना जाता है। जॉनसन एंड जॉनसन के साथ मिलकर आईएमटेक ऐसी दवाओं का विकास करेगी जो इन सब प्रकार के टीबी का सफलता पूर्वक इलाज कर सके। ये दवाएं खाने वाली होंगी तथा एचआईवी पॉजिटव लोगों को भी बिना किसी परेशानी के दी जा सकेंगी। परियोजना का लक्ष्य ऐसी दवा बनाना है जिसका आकार छोटा हो, इसका सेवन कम करने की जरूरत हो और इसे कम अवधि तक खानी पड़े।