ग्वालियर। जयारोग्य अस्पताल में 10 लाख रुपये के दवा घोटाले की जांच पूरी होने के बाद अधीक्षक डा.आरकेएस धाकड़ ने रिपोर्ट डीन कार्यालय भेज दी है। जहां से रिपोर्ट संभागायुक्त को भेजी जाएगी और उसके बाद ही दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। इस घोटाले में जांच कमेटी रिपोर्ट में सर्जरी विभाग के वार्ड प्रभारी प्रमोद गुप्ता को दोषी पाया गया है। गजब की बात यह है कि जिस मामले में प्रमोद गुप्ता को दोषी पाया गया, उसी मामले में स्टोर से दवा उपलब्ध कराने वाले स्टाफ को क्लीन चिट दी गई है, क्योंकि सर्जरी विभाग से बिना मांग के दवाओं को उपलब्ध आखिर किस के कहने पर कराया गया।

जांच रिपोर्ट में इन सवालों के जवाब नहीं हैं। जेएएच अधीक्षक – डा.आरकेएस धाकड़ ने बताया कि इम्नोग्लोबिन इंजेक्शन की जांच पूरी हो चुकी है और जांच रिपोर्ट डीन की ओर अग्रेसित भी कर दी, जहां से रिपोर्ट संभागायुक्त के पास पहुंचाई जाएगी। संभागायुक्त जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए निर्देशित करेंगे।

गौरतलब है कि एक इम्नोग्लोबिन इंजेक्शन की कीमत पांच हजार रुपये है। सेंट्रल स्टोर से बिना मांग के बर्न वार्ड के सर्जरी विभाग को करीब 200 इंजेक्शन भेजे गए। यह इंजेक्श्न किसी भी मरीज के इलाज में उपयोग नहीं आए। जब यह गड़बड़ी उजागर हुई तो जांच कमेटी गठित की गई। जांच की आंच अस्पताल प्रबंधन पर आने लगी तो कमेटी भंग कर स्टोर प्रभारी डा.देवेन्द्र कुशवाह के नेतृत्व में दूसरी कमेटी बनाई गई। इम्नोग्लोबिन इंजेक्शन व मधुमेह रोग में उपयोग आने वाली सीटाग्लप्टिन टेबलेट का 20 लाख का घोटाला हुआ था। जिसमें दूसरी कमेटी ने केवल इम्नोग्लोबिन इंजेक्शन की जांच की।

वह भी अधूरी, क्योंकि बिना मांग के इतना महंगा इंजेक्शन उपलब्ध कराना ही गड़बड़ी उजागर करता है। फिर स्टोर से इंजेक्शन उपलब्ध कराने वालों को दोषी नहीं बनाया गया। सीटाग्लप्टिन की 20 हजार टेबलेट सीएमएचओ स्टोर को भेजी गईं थीं। इन दवाओं का सीएमएचओ स्टोर में भी लेखाजोखा गड़बड़ पाया गया। सीटाग्लप्टिन की करीब पांच हजार टेबलेट सीएमएचओ स्टोर से वापस आईं। उसका रिकार्ड स्टोर के पास नहीं है। इस गड़बड़ी की जांच शुरू तक नहीं की गई।