जींद। शहर के रोहतक रोड स्थित बालाजी अस्पताल में कोरोना पीड़ित मरीजों के साथ जमकर लूटपाट हुई थी। सभी मरीजों से दोगुने से ज्यादा रुपये लिए गए थे। यही नहीं, अस्पताल में खराब हालात के चलते कोरोना मरीजों के साथ आए स्वजनों में भी संक्रमण फैला। रोडवेज जीएम की अध्यक्षता ने डीसी कैंप आफिस में करीब 2000 पेजों की जांच रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि कोरोना मरीजों से हुई लूट के आरोपों में दोषी पाए गए बालाजी अस्पताल पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
बता दें कोरोना मरीजों से ज्यादा रुपये वसूलने की शिकायत पर 21 मई को डीसी डा. आदित्य द्वारा गठित की गई टीम ने बालाजी अस्पताल में छापा मारा था। कोरोना के प्रशासनिक नोडल अधिकारी एचसीएस बिजेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी ने अस्पताल का काफी रिकार्ड उसी समय कब्जे में ले लिया था। जांच के दौरान भी अस्पताल से रिकॉर्ड मंगवाया गया। जांच टीम ने चार-पांच दिन बाद ही अपनी प्राथमिक रिपोर्ट सौंप दी थी, जिसमें ज्यादा चार्ज वसूलने की शिकायत को सही पाया गया था। अब 20 दिन बाद जांच टीम ने रात विस्तृत रिपोर्ट डीसी को सौंप दी।
सूत्रों के अनुसार इस रिपोर्ट में 50 दिन भर्ती रहे करीब 380 मरीजों की फाइलों को चेक किया गया। इनमें कुछ मरीजों को जांच टीम ने बयान कलमबद्ध करवाने के लिए बुलाया। मरीजों के बयानों और सभी कागजों की गहन पड़ताल के आधार पर बनाई गई रिपोर्ट में अस्पताल को कई मामलों में दोषी पाया गया है। अस्पताल में क्षमता से अधिक मरीज भर्ती किए गए थे। अस्पताल के अंदर हालात इतने बदतर थे कि मरीजों के तीमारदारों में भी संक्रमण फैलने का खतरा था। अब देखना है कि इस जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग अस्पताल के खिलाफ क्या कार्रवाई करता है।
जांच कमेटी ने बालाजी अस्पताल के संचालक डा. डीपी जैन को भी अपने समक्ष बुलाया था। जांच टीम डा. डीपी जैन को प्रश्नोत्तरी दे रही थी, लेकिन उन्होंने खुद ही लिखकर दे दिया कि मरीजों से दवाइयों, टेस्ट सहित जो भी फालतू रुपये लिए हैं, वह उन्हें वापस कर देंगे। यह भी कहा कि भविष्य में कोरोना प्रोटोकॉल का भी पालन किया जाएगा। जांच कमेटी ने डीसी को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि सभी मरीजों को प्रशासन की मौजूदगी में रुपये वापस कराए जाएं। अब यह काफी अहम रहेगा कि प्रशासन कितने मरीजों को अपनी मौजूदगी में रुपये वापस कराता है।
बालाजी अस्पताल में कमरों के बाहर बाहर शीशों पर आइसीयू लिखा हुआ था। लेकिन अंदर आइसीयू वाली कोई सुविधा नहीं थी। हद तो यह थी कि सभी मरीजों को सामान्य आइसोलेशन बेड पर रखा गया, जिसके 8 हजार रुपये बनते थे। लेकिन मरीजों से आइसीयू के 13 हजार रुपये वसूले गए। यही नहीं, दवाइयों, टेस्ट और मास्क के अलग से रुपये वसूले गए। एक मरीज तो ढाई हजार रुपये का बेड घर से लेकर आया। इस तरह से मरीजों के साथ सरकार को भी चूना लगाया गया, क्योंकि सरकारी कर्मचारी विभाग से भी 8 के बजाय 13 हजार रुपये ही मांगेगा, जो बिल में लिखे गए हैं।
जांच कमेटी ने पीड़ित मरीजों को अपने सामने बयान दर्ज करने के बुलाया, जिसमें कई मरीजों ने रोते हुए बयान दर्ज कराए। एक मरीज ने रोते हुए कहा कि डॉक्टर ने गदर मचा रखा था। उनसे हर चीज के डबल रुपये लिखे गए। उनके रुपये वापस कराए जाएं। जांच कमेटी ने भी मरीजों के भावुक बयानों को अपनी रिपोर्ट में भी दर्ज किया है। कई मरीजों से 5400 रुपये वाली दवा के 9 हजार रुपये वसूल कर रखे हैं। सारे मरीजों की फाइलों की जांच करके और बयान दर्ज करके जांच कमेटी ने औसत निकाला तो हर मरीज से डबल रुपये वसूल रखे थे। जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में भी यही लिखा है।
सरकार के नियमानुसार आइसोलेशन बेड पर दाखिल मरीज से दवाई, टेस्ट, खाना, डाक्टर की विजिट सहित आक्सीजन के आठ हजार रुपये लिए जा सकते थे। लेकिन मरीजों को खाना नहीं दिया गया। दवाई के अलग रुपये लिए गए। टेस्ट के भी अलग से रुपये लिए गए। बिल भी 8 हजार रुपये के बजाय 13 हजार बना दिया गया। सीटी स्कैन के भी 4100 रुपये वसूले गए, जबकि यह भी आठ हजार के पैकेज में शामिल था। डीसी को रिपोर्ट सौंपने से पहले भी कमेटी ने डा. डीपी जैन और दवाई वाले को अपने सामने बुलाया और कई सवालों के जवाब लिए। सरकार को मरीज भी कम दिखाए।
एक मरीज ने जांच कमेटी के सामने कहा कि उसके पिताजी अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। डाक्टर ने उनकी देखभाल के लिए अपना अटेंडेंट रखने के बजाय उन्हें बुलाया गया। अस्पताल में पिताजी की सेवा करते हुए उन्हें भी कोरोना संक्रमण हो गया। उनके बाद परिवार के चार सदस्य संक्रमित हो गए और सबको एडमिट होना पड़ा। उनसे करीब तीन लाख रुपये वसूल लिए। डाक्टर व उसके स्टाफ के सदस्यों ने किट नहीं पहन रखी थी। इसी तरह एक मरीज ने रोते हुए कमेटी के सामने यह भी आरोप लगाया कि अस्पताल की लापरवाही के चलते उनके मरीज की मौत हो गई। सही तरीके से इलाज नहीं किया।
जांच टीम के सामने दर्ज कराए बयानों में अलेवा के मरीज ने कहा कि वह 12 अप्रैल को बालाजी अस्पताल में दाखिल हुआ था। उसी दिन शाम को डाक्टर ने रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाने की बात कही। डाक्टर ने कहा कि उसका जानकार पानीपत में हैं, वह रेमडेसिविर इंजेक्शन का प्रबंध करवा सकता है। मेरे परिवार के लोग रात को ही रेमडेसिविर इंजेक्शन लेने चले गए। डाक्टर के बताए पते से रात साढ़े 12 बजे पानीपत शहर के खेतों से रेमडेसिविर इंजेक्शन लेकर आए। छह इंजेक्शन देने की बात हुई थी, लेकिन उसने चार इंजेक्शन ही दिए और एक इंजेक्शन के 5400 रुपये के हिसाब से कुल 21600 रुपये ले लिए।
इंजेक्शन देने वाले ने कहा कि उसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं दी जाए। चार इंजेक्शन लगाने के बाद दो और इंजेक्शन लगाने की बात डाक्टर ने कही। वह इंजेक्शन का प्रबंध करने में असमर्थ हुए तो डाक्टर ने कहा कि वह चंडीगढ़ से रेमडेसिविर इंजेक्शन मंगवा सकता है, लेकिन वह महंगा मिलेगा। इस पर एक इंजेक्शन के 9 हजार के हिसाब से 18 हजार दो इंजेक्शन के लिए लिए। मुझे सात दिन में ही अस्पताल से छुट्टी दे दी, जबकि मैं पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुआ था। मेरे से आइसीयू के हिसाब से पैसे लिए गए, लेकिन मुझे जनरल वार्ड में रखा गया था। सात दिन तक दाखिल करने के 1.33 लाख रुपये का बिल बना दिया, जबकि मेरा 1.64 लाख रुपये खर्च आया। सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के हिसाब से मेरा खर्च 56 हजार ही आना था।
बालाजी अस्पताल के संचालक डा. डीपी जैन से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उनका अस्पताल सिवियर केस के लिए सेलेक्ट किया गया था। उसकी फीस 13 हजार प्रतिदिन बनती थी। अब प्रशासन कह रहा है कि उस तरह की सुविधा नहीं थी। वे 8 हजार के हिसाब से कंसीडर करेंगे। जांच रिपोर्ट में भी टीम ने कहा है कि बाहर आइसीयू लिखा था, अंदर कोई सुविधा नहीं थी।
बालाजी अस्पताल द्वारा मरीजों से ज्यादा रुपये लेने के मामले की जांच कर रही कमेटी अपनी रिपोर्ट उन्हें सौंप दी है। जांच रिपोर्ट में अस्पताल पर लगे आरोप सही पाए गए हैं। रिपोर्ट को जल्द प्रोसेस करके सरकार को कार्रवाई के लिए लिखेंगे। डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसिज को बालाजी अस्पताल पर सख्त कार्रवाई के लिए सिफारिश की जाएगी। जिला प्रशासन जो कार्रवाई कर सकता है, वह एक्शन भी लिया जाएगा।