नई दिल्ली। कोरोना काल में दवाइयों के दाम लगातार बढ़ते ही जा रहें है। अब इसी कड़ी में एक बार फिर से कोरोना की दवाओं के दाम बढ़ने के आसार लगाए जा रहे है। कुछ वजह ऐसी है जिनसे ये उम्मदी लगाई जा रही है कि एक बार फिर से कोरोना की दवाओं के दाम बढ़ सकते है जिसका सीधा असर मरीजों के जेब पर पड़ सकता है। आने वाले दिनों में कोरोना के इलाज में जरूरी दवाइयों की कीमत में बढ़त देखी जा सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है दवाएं बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमत का बढ़ना।
दवाओं के कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स यानी एपीआई की कीमतों में कोरोना से पहले की तुलना में करीब 140 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसकी वजह से फार्मा इंडस्ट्री पर दबाव बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। फार्मा कंपनियों को आयात भी काफी महंगा पड़ रहा है और साथ ही चीन की तरफ से सप्लाई में भी दिक्कतें आ रही हैं। इन सबकी वजह से दवाओं की कीमतें करीब 50 फीसदी तक बढ़ सकती हैं और हो सकता है कि कोरोना की दवाओं की कमी से भी जूझना पड़े।
बुखार और दर्द की दवा पैरासिटामोल के एपीआई की कीमत करीब 139 फीसदी बढ़ चुकी है। वहीं जीवन रक्षक एंटीबायोटिक मेरोपेनेम (कोरोना के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है) के एपीआई की कीमत में 127 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं एंटी डायबिटिक मेटफॉर्मिन के एपीआई की कीमतें लगभग 124 फीसदी बढ़ चुकी हैं। भारत में करीब 70 फीसदी एपीआई का आयात चीन से होता है। वहीं जीवन सेफेलोस्पोरिंस, एजीथ्रोमाइसिन और पेनिसिलिन जैसी रक्षक एंटीबायोटिक्स के लि चीन पर निर्भरता करीब 90 फीसदी है।
दवाओं की कीमतें सरकार के कंट्रोल में होने की वजह से कंपनियों को ऊंची कीमत पर भी कच्चा माल लेना पड़ रहा है, जिससे भविष्य में दवाओं की कमी का खतरा भी है। ऐसे में दवा कंपनियां कुछ हाई-वैल्यू प्रोडक्ट की ओर मुड़ सकती है, जिनमें मुनाफा अधिक है। हो सकता है कुछ दवाएं रिटेल शेल्फ से गायब ही हो जाएं, क्योंकि मुनाफा कम होने या नुकसान के चलते कंपनियां उन्हें बनाना ही बंद कर सकती हैं। फार्मा इंडस्ट्री के विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे में सारा बोझ मरीजों पर आ सकता है, जिन्हें मजबूर होकर महंगी दवाओं की ओर मुड़ना पड़ेगा।
दवाओं के महंगे होने की सबसे बड़ी वजह तो यही रहेगी कि कच्चा माल यानी एपीआई की कीमत बढ़ रही है। वहीं सप्लाई की दिक्कत से भी दवाओं की कीमतों पर असर पड़ सकता है। इतना ही नहीं, कार्गो रेट काफी बढ़ चुके हैं। आयात के लिए कंटेनर नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में कंपनियों को ऊंची कीमत देने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिनसे भी दवाओं की कीमतें बढ़ने का अंदेशा लगाया जा रहा है।