Generic Medicine: जब शख्स बीमार पड़ता है तो जेब पर अच्छा खासा खर्चा पड़ता है। सेहत के साथ-साथ पैसे भी अधिक खर्च होते हैं। परिवार में किसी को गंभीर बीमारी हो जाए, तो पूरे घर का बजट बिगड़ जाता है और कमाई का बड़ा हिस्सा दवाइयों पर खर्च होता है। अधिकांश लोगों का ऐसा कहना है कि डॉक्टरों और कंपनियों की मिलीभगत के कारण मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां ही प्रिस्क्राइव की जाती हैं। महंगी ब्राडेंड दवाइयों पर डॉक्टरों को मोटा कमिशन मिलता है साथ ही महंगे-महंगे गिफ्ट भी मिलते हैं। इसलिए केंद्र सरकार इन दिनों जेनेरिक दवाइयों (Generic Medicine) के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर डाल रही है। लोग जेनेरिक दवाइयों के प्रति अब ज्यादा जागरुक हो रहे हैं। आज हम आपको जेनेरिक दवाइयों और ब्राडेंड दवाइयों में अंतर बताने जा रहे हैं।
क्या होती है जेनेरिक दवाइयां (Generic Medicine)
ड्रग्स प्रोडक्शन कंपनियां अलग-अगल बीमारियों के इलाज के लिए किए गए शोध के आधार पर सॉल्ट बनाते हैं। इसे गोली, कैप्सूल या दूसरी दवाइयों में बदल कर दिया जाता है। एक ही सॉल्ट को अलग-अलग कंपनियां अलग नाम से और अलग कीमत पर बेचती हैं। साल्ट का जेनेरिक नाम कंपोजिशन और बीमारी को ध्यान में रखते हुए एक विशेष समिति तय करती है। किसी भी सॉल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही होता है। ऐसे में जेनेरिक दवा लेने पर डॉक्टर का लिखा सॉल्ट बहुत कम कीमत पर मिल जाता है। कितनी बार जेनेरिक दवा और ब्राडेंड दवा की कीमत में 90 प्रतिशत तक का फर्क होता है।
जेनेरिक दवाइयां और ब्राडेंड दवाइयों में अंतर
बुखार की दवा यदि कोई बड़ी कंपनी बनाती है तो वो ब्राडेंड दवाई बन जाता है। कंपनी केवल उस दवा को अपना नाम देती है। जब कोई छोटी कंपनी इसी दवाई बनाती है तो इसे जेनेरिक दवाई कहा जाता है। हालांकि, इन दोनों के असर में कोई अंतर नहीं होता है। केवल कंपनी का अंतर होता है। जिससे कीमत में भी अंतर आ जाता है। इसलिए दवाई खरीदते वक्त सॉल्ट का ध्यान देना आवश्यक है कंपनी का नहीं। अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बनी Generic दवाइयों का असर भी ब्रांडेड दवाइयों के बराबर ही होता है।
जेनेरिक दवाइयों की कीमत कम क्यों होती है
दरअसल पेटेंट ब्रांडेड दवाइयों की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं। रिसर्च, डेवलपमेंट, मार्केटिंग, प्रचार और ब्रांडिंग पर बड़ी लागत आती है। जबकि जेनेरिक दवाइयों की सीधे मैन्युफैक्चरिंग होती है। इनके ट्रायल्स पहले ही हो चुके होते हैं। इसमें कंपनियों के पास एक फॉर्मूला होता है और इनसे दवाइयां बनाई जाती है। जेनेरिक दवाइयों की कीमत सरकार के द्वारा तय की जाती है।
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