जिन महिलाओं को गर्भ धारण करने में दिक्कत होती है वो विट्रो-फर्टिलाइजेशन (IVF) का सहारा लेती हैं। लेकिन हाल ही के अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। जिन महिलाओं को आईवीएफ का ट्रीटमेंट मिला है उन महिलाओं में डिलीवरी के 12 महीनों के भीतर स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
ये शोध रटगर्स यूनिवर्सिटी के द्वारा किया गया है। शोधकर्ताओं ने तकरीबन 31,339,991 उन गर्भवती महिलाओं पर विश्लेषण किया जिनकी 2010 से 2018 के बीच डिलीवरी हुई थी। उन महिलाओं पर भी विश्लेषण किया जिन्हें बांझपन का इलाज नहीं मिला। सी महिलाओं में शोधकर्ताओं ने स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के लिए प्रसव के तुरंत बाद के दिनों में समय पर फॉलोअप और long term follow up जारी रखने के लिए कहा है।
IVF इन महिलाओं के लिए अधिक जोखिम भरा
शोधकर्ताओं का मानना है कि हॉर्मोन उपचारों के कारण स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। आईवीएफ खास तौर पर उन महिलाओं के लिए अधिक जोखिम भरा है जिनमें ठीक से आईवीएफ प्लेसेंटा इम्प्लांट नहीं होता। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि 5 में से 1 महिला को अपने जीवन में स्ट्रोक होने का खतरा होता है।
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यह रिसर्च ऐसे समय में सामने आया है, जब हाल के वर्षों में प्रौद्योगिकी में पर्याप्त प्रगति और नई दवाओं के विकास से बांझपन के इलाज में तेजी आई है। हृदय रोग (सीवीडी) महिलाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है। हर साल तीन में से एक मौत सीवीडी के कारण होती है। स्ट्रोक पुरुषों और महिलाओं दोनों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है।
आईवीएफ से महिलाओं में खून की कमी
आईवीएफ के दौरान महिलाओं में इस्केमिक स्ट्रोक, अधिक सामान्य, मस्तिष्क के एक क्षेत्र में खून की कमी के नुकसान के कारण होता है। जबकि रक्तस्रावी स्ट्रोक रक्त वाहिका blood vessel के टूटने से मस्तिष्क में रक्तस्त्राव होता है।