जबलपुर (मध्यप्रदेश)। निजी मेडिकल कॉलेजों ने योग्य उम्मीदवारों को अनदेखा कर अयोग्य उम्मीदवारों से लाखों रुपए वसूलकर एमबीबीएस की सीटें बेच डाली। इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। ज्ञातव्य है कि न्यायमूर्ति आरएस झा व जस्टिस नंदिता दुबे की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी पृथ्वी नायक, रीवा निवासी शुभम तिवारी, रायसेन निवासी वत्सला शुक्ला, ग्वालियर निवासी आदित्य श्रीवास्तव, इंदौर निवासी हिमानी, खंडवा निवासी शेख इसरार, नीमच निवासी यश प्रताप आहूजा और पन्ना निवासी अंकिता अग्निहोत्री की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। कोर्ट में दलील दी गई कि मध्यप्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक से एमबीबीएस/बीडीएस की काउंसिलिंग पूरी पारदर्शिता से आयोजित करने के निर्देश दिए गए। इसके बाद भी राज्य में पूर्व वर्षों की तरह मनमानी की गई। इसके तहत योग्य नीट क्वालीफाई छात्र-छात्राओं का हक मारते हुए अपेक्षाकृत अयोग्य छात्र-छात्राओं से पैसा लेकर साल नीट-2017-18 सत्र में 94 एमबीबीएस सीटें 25 से 80 लाख रुपए में बेच दी गईं।
हाई कोर्ट को बताया गया कि 10 सितंबर को सात बजे मॉप-अप ऑनलाइन काउंसिलिंग की सूची डाली गई। इसके बाद फरमान जारी किया कि जो आवेदक रात्रि 11.59 तक कॉलेज पहुंचकर दाखिले की प्रक्रिया पूरी करेंगे, केवल उन्हें ही एमबीबीएस सीटें मिलेंगी। टाइमिंग चूके तो संबंधित सीट किसी और को दे दी जाएगी। सवाल उठता है कि ऑनलाइन जानकारी मिलने के बाद दूर-दराज के छात्र-छात्राओं द्वारा अपने लिए आवंटित कॉलेज तक की दूरी महज पांच घंटे में भला कैसे तय की जा सकती थी? कोर्ट ने इस मामले में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा और डीएमई के अलावा इंडेक्स इंदौर, एनएल भोपाल, अमलतास देवास, चिरायु भोपाल और आरकेडीएफ भोपाल को नोटिस जारी किए हैं।