नई दिल्ली। भारतीय फार्मा उद्योग ब्रिटेन और अमेरिका में दवा निर्यात करने की जुगत में है। वित्त वर्ष 24 में भारत ने 27.9 अरब डॉलर के दवा उत्पादों का निर्यात किया था, जो पिछले साल की तुलना में 9.6 प्रतिशत अधिक रहा।
फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल (फार्मेक्सिल) के महानिदेशक उदय भास्कर का कहना है कि समूह का लक्ष्य ब्रिटेन को एक अरब डॉलर का निर्यात करने का है। उनके अनुसार वहां पर किफायती जेनेरिक दवा की मांग बढ़ रही है। नवंबर के आसपास बेल्जियम, नीदरलैंड और ब्रिटेन में रोड शो करने की भी योजना है।
किफायती जेनेरिक दवाओं की बढ़ेगी मांग
सार्वजनिक वित्तीय सहायता वाली ब्रिटेन की नैशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) कमी के कारण नुस्खों के अनुसार तुरंत दवा देने में असमर्थ है और उसका उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम करना है। इस कदम से किफायती जेनेरिक दवाओं की मांग बढ़ेगी।
फार्मेक्सिल का कहना है कि वित्त वर्ष 25 में ब्रिटेन निर्यात का आशाजनक केंद्र है। वित्त वर्ष 24 में ब्रिटेन को भारत का दवा निर्यात पिछले साल की तुलना में 21.1 प्रतिशत बढक़र 78.432 करोड़ डॉलर हो गया। पिछले वर्ष 8.28 प्रतिशत तक की गिरावट के बाद यह इजाफा हुआ है।
भारत के औषधि निर्यात में ब्रिटेन की हिस्सेदारी 2.82 प्रतिशत है। भारतीय दवा निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 31 प्रतिशत है और यह बाजार बढ़ भी रहा है। जेनेरिक दवा विनिर्माता टेवा फार्मास्युटिकल्स ने अमेरिका में अपने कुछ संयंत्रों में उत्पादन बंद कर दिया था। दवाओं की कमी के कारण वित्त वर्ष 24 में अमेरिका को भारतीय निर्यात में पिछले साल के मुकाबले 15.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
उनहोंने कहा कि अमेरिका भारतीय दवा विनिर्माताओं के लिए एक ‘दमदार शक्ति’ बना रहेगा क्योंकि वहां 90 प्रतिशत से ज्यादा नुस्खे सस्ती जेनेरिक दवाओं वाले होते हैं। साल 2022 में अमेरिका में दिए गए 10 में से चार नुस्खों के लिए भारतीय कंपनियों ने सप्लाई की थी।
भारतीय दवा कंपनियां अफ्रीका, खास तौर पर नाइजीरिया और सीआईएस देशों पर भी नजऱ रख रही हैं, जिसमें रूस और पूर्व सोवियत संघ के कुछ अन्य देश शामिल हैं। ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं, जहां उनका कारोबार दबाव में है।