नई दिल्ली। सुपरबग के प्रभाव से आगामी 2050 तक करीब 4 करोड़ लोगों की मौत होने की आंशका जताई गई है। एक नए शोध में यह अनुमान लगाया गया है। इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं के प्रति प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण दुनियाभर में चल रहे सुपरबग संकट के बोझ पर चिंता जताई गई है।

द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि 2050 तक दुनियाभर में 40 मिलियन से अधिक मौतें हो सकती हैं, जो सीधे तौर पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध या एएमआर के लिए जिम्मेदार हैं। गौरतलब है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया और कवक जैसे रोगजनक उन्हें मारने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं से बचने की क्षमता विकसित कर लेते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एएमआर को शीर्ष वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य और विकास खतरों में से एक कहा है। यह मनुष्यों, जानवरों और पौधों में रोगाणुरोधी दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग से प्रेरित है। यह रोगजनकों को उनके प्रति प्रतिरोध विकसित करने में मदद कर सकता है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के निदेशक और प्रमुख लेखक डॉ. क्रिस मरे ने कहा कि जब एएमआर की व्यापकता और इसके प्रभावों की बात आती है, तो हम उम्मीद करते हैं कि यह और खराब हो जाएगा। हमें नए एंटीबायोटिक्स और एंटीबायोटिक प्रबंधन पर उचित ध्यान देने की ज़रूरत है। इससे वास्तव में एक बड़ी समस्या का समाधान हो सकेगा।

शोधकर्ताओं ने पाया कि 1990 से 2021 तक, 5 साल से कम उम्र के बच्चों में एएमआर से होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत से अधिक गिरावट आई है। वहीं, 70 और उससे अधिक उम्र के वयस्कों में 80 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। मरे ने कहा कि हमारे पास ये दो विपरीत रुझान चल रहे थे।

15 साल से कम उम्र में एएमआर से होने वाली मौतों में गिरावट, ज्यादातर टीकाकरण, पानी और स्वच्छता कार्यक्रमों, कुछ उपचार कार्यक्रमों और उनकी सफलता के कारण है। वहीं 50 वर्ष से अधिक उम्र में होने वाली मौतों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। लोागों की उम्र बढऩे के साथ ही वृद्ध व वयस्क गंभीर संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।