मुंबई : पिछले 2 महीने के दौरान चीन से आयातित एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इनग्रेडिएंट्स (एपीआई) के दाम 30 से 50 प्रतिशत बढ़े हैं। इस कारण कंपनियों का खर्च लगातार बढ़ रहा है। इसका सीधा असर फार्मा कंपनियों के मुनाफे पर पड़ रहा है। यह तो सब जानते हैं कि दवा बनाने वाले रसायनों और अन्य सामग्री की खातिर भारत की घरेलू दवा कंपनियां चीन पर निर्भर है और उनकी यह निर्भरता महंगी पड़ रही है।

केपीएमजी सीआईआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक एपीआई का आयात 11 प्रतिशत सीएजीआर से बढक़र 2004 के 80 करोड़ डॉलर से 2016 में 2.8 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। 2016 में मात्रा के हिसाब से चीन से कुल 60 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 70 प्रतिशत आयात हुआ है। इंडियन फार्मास्यूटिकल्स अलायंस के महासचिव डीजी शाह ने कहा कि चीन में दवा नियामक ने स्थानीय विनिर्माताओं पर निगरानी बढ़ा दी है और बेहतरीन विनिर्माण गतिविधि के अनुपालन से उनके उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह से चीन में एपीआई लागत 30-50 प्रतिशत बढ़ी है।

एचडीएफसी सिक्योरिटीज के विश्लेषक एमी चालके की मानें तो एपीआई की लागत में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी होने से घरेलू बिक्री में मुनाफा 1.5 से 3 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकता है। एपीआई में कच्चा माल और सहायक सामग्री शामिल होता है, जिनका इस्तेमाल दवाओं में करते हैं। पिछले एक दशक में झांके तो स्थानीय दवा विनिर्माताओं ने इन कच्चे माल के उत्पादन में कमी कर दी है। कई मामलों में ज्यादा लागत होने की वजह से उत्पादन ही बंद कर दिया गया है।