जयपुर। प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना पर सवालिया निशान लग गया है। इस परियोजना के तहत जेनरिक दवाएं मुहैया करवाने के लिए प्रदेश में 99 जन औषधि केंद्र खोले गए थे। इनमें से 25 जन औषधि केंद्र पिछले तीन साल में बंद हो चुके हैं। अकेले जयपुर जिले में ऐसे 16 केंद्र खुले थे, जिनमें से छह पर ताले लग चुके हैं। इसके अलावा अलवर, कोटा व जोधपुर आदि के भी आधे से ज्यादा जन औषधि केंद्र बंद हो गए हैं। प्रदेश में हर साल दवाओं का करीब 500 करोड़ का कारोबार होता है लेकिन तीन साल में जन औषधि केंद्रों पर महज 25 लाख रुपए की ही जेनरिक दवाएं बिक पाई थीं। जानकारों का कहना है कि जब पुराने अनुभव से सबक लेकर जेनरिक दवाओं की बिक्री बढ़ाने के उचित उपाय नहीं किए जाएंगे, तब तक नए आदेश का लाभ मरीजों को मिलना मुश्किल है।
उधर, सरकार ने सभी रिटेल स्टोर पर जेनरिक दवाओं की अलग से आलमारी की अनिवार्यता लागू कर दी है, लेकिन पहले से खुले जन औषधि केंद्र खुद बीमार हैं। केंद्र सरकार ने हर जन औषधि केंद्र पर एक लाख रुपए की सब्सिडी, 18 फीसदी कमीशन व 10 प्रतिशत इंसेंटिव घोषित किया था। पीएमबीजेपी के तहत सब्सिडी जैसी सुविधाओं के बावजूद पांच जिलों प्रदेश चित्तौडगढ़, बारां, जैसलमेर, धौलपुर व बूंदी में एक भी केंद्र नहीं खुल पाया। इस बारे में ड्रग कंट्रोलर अजय फाटक का कहना है कि प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत प्रदेश के 20 से 25 जन औषधि स्टोर संचालकों ने अपने लाइसेंस कैंसिल करवा लिए हैं।
स्टोर के बंद होने के कारणों की जानकारी मुझे नहीं है। उधर, राजस्थान कैमिस्ट एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष आर.बी.पुरी ने बताया कि जन औषध मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली जेनरिक दवाओं पर लोगों का कम विश्वास है। साथ ही मौजूदा स्थिति में पूरी दवाएं भी नहीं मिल रही हैं। क्वालिटी व उपलब्धता की कमी के चलते धीरे-धीरे बंद होने के कगार पर हैं। प्रदेश में सालाना दवा का करीबन 500 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। जन औषधि केंद्र बंद होने के कई कारण हैं। मांग के अनुसार जेनरिक दवाओं की पूरी सप्लाई नहीं होती। सभी दवाइयां नहीं मिलतीं। 600 में से 150-200 दवाएं ही उपलब्ध रहती हैं। इसके अलावा केंद्रों पर मल्टीविटामिन, डायबिटीज, हार्ट, कैंसर, अस्थमा, नेत्र व चर्म रोग जैसी सामान्य बीमारियों की दवा उपलब्ध नहीं होती। केंद्र व राज्य सरकार के आदेश के बावजूद डॉक्टर जेनरिक दवा नहीं लिख रहे। वहीं, जन औषधि केंद्रों का उचित प्रचार-प्रसार नहीं होना तथा दवाइयों की कम बिक्री से कारोबार में घाटा होना भी मुख्य कारणों में शामिल हैं।