नई दिल्ली। कोरोना महामारी के बाद से एंटीडिप्रेसेंट दवाओं का भाारत में इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। बीते कुछ सालों में एंटीडिप्रेसेंट्स और मूड एलिवेटर्स की बिक्री में तेजी आई है। बिक्री आंकड़ों के अनुसार कोरोना के बाद तीन-चार सालों में ही देश में एंटीडिप्रेसेंट दवाइयों का इस्तेमाल 64 प्रतिशत तक बढ़ गया है। यह खुलासा प्रमुख दवा कंपनियों पर नजर रखने वाले डेटा फार्मारैक के आंकड़ों से हुआ है। बताया गया है कि 2020 में देश में इन दवाओं का बाजार 1,540 करोड़ रुपये का था, जोकि नवंबर 2024 तक बढक़र यह 2,536 करोड़ रुपये हो गया है।

लिस्ट में टॉप पर एस्सिटालोप्राम और क्लोनाज़ेपम का कॉम्बिनेशन है। इसकी सेल्स 2020 के बाद से 59.35 फीसदी तक बढ़ी है. एस्सिटालोप्राम, डिप्रेशन और स्ट्रेस डिसऑर्डर के इलाज में इस्तेमाल होती हैं। वहीं, क्लोनाज़ेपम नर्व्स सिस्टम को शांत करके स्ट्रेस, घबराहट और दौरे को रोकती है।

रिपोर्ट के अनुसार, सर्ट्रालीन की बिक्री भी चार सालों में 48.2 फीसदी तक बढ़ी है। इसका इस्तेमाल डिप्रेशन या मेंटल डिसऑर्डर में होता है। सर्ट्रालाइन, एस्सिटालोप्राम और क्लोनाज़ेपम जैसी दवाएं दुनियाभर में इस्तेमाल होती हैं।
मनोचिकित्सकों का मत है कि ये दवाएं भारत में सबसे ज्यादा एंटी डिप्रेशन के तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं। इस कारण इनका ज्यादा इस्तेमाल हैरान करने वाला नहीं है। इन दवाओं की बिक्री बढऩा एक तरह से पॉजिटिव सोच भी दिखाता है कि ज्यादा लोग अब इलाज की मांग कर रहे हैं। इसकी कम डोज भी तय की जा रही है, जिसका फायदा मरीजों में देखने को मिल रहा है।