नई दिल्ली। भारत ने नई एंटीबायोटिक दवा बनाकर इतिहास रच दिया है। बता दें कि दुनियाभर की एंटीबायोटिक दवा फेल हो रही हैं। यह रेजिस्टेंस होने लगी हैं। मतलब दवा बैक्टीरिया को मारने में अक्षम हो रही है। पिछले 30-40 साल में दुनिया में नई एंटीबायोटिक दवा नहीं बनी है। पुरानी एंटीबायोटिक दवा बैक्टीरिया पर बेअसर होने लगी है। इस कारण पूरी दुनिया को ऐसी एंटीबायोटिक दवा की जरूरत थी। भारत ने पहले स्वदेशी एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन को लॉन्च कर दिया है।

इसे फार्मा कंपनी वोलकार्ड ने मिकनाफ नाम से बाजार में उतारा है। यह देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित एंटीबायोटिक है। इसका उद्देश्य बैक्टीरिया रेजिसटेंस यानी एएमआर से निपटना है। निमोनिया की बीमारी में इसकी तीन खुराक दी जाती हैं और यह पहले की दवाइयों की तुलना में 10 गुना ज्यादा असरकारी है। इसका कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है। यह एजिथ्रोमाइसिन की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है।

यूरेनरी इंफेक्शन की दवा को अमेरिका में भी मंजूरी

मूत्र इंफेक्शन को खत्म करने के लिए भारत ने जो एंटीबायोटिक विकसित की है। उसे अमेरिकी एफडीए ने भी मंजूरी दे दी है। इस दवा को चेन्नई स्थित ऑर्किड फार्मा ने विकसित किया है। इसका नाम एनमेटाज़ोबैक्टम है। भारत में ईजाद किया गया पहला एंटीमाइक्रोबियल है। जिसे यूएस एफडीए से मंजूरी मिली है। कोरोना को लेकर पूरी दुनिया में तबाही मची थी। कोई दवा नहीं थी। तब भारत ने तेजी से स्वदेसी वैक्सीन बनाई।

भारत का फार्मा उद्योग दे रहा टक्कर

1990 में भारत का फार्मा उद्योग एक अरब डॉलर का था। आज यह बढक़र 65 अरब तक पहुंच चुका है। भारत का फार्मा सेक्टर 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान के बाद इस क्षेत्र में तेज निवेश हो रहा है। भारत 200 से ज्यादा देशों में अपनी दवाइयां भेजता है।