नई दिल्ली। प्रतिबंधित दवाओं के लाइसेंस बिना जांच के जारी करने का मामला प्र्रकाश में आया है। कई राज्यों ने फार्मा कंपनियों को लाइसेंस देने से पहले इन दवाओं की सुरक्षा और प्रभाव के बारे में जानकरी नहीं ली गई। इसके चलते तीन दर्जन से अधिक प्रकार की दवाएं बाजार में पहुंच गईं। इन दवाओं का इस्तेमाल बुखार, मधुमेह, बीपी, कोलेस्ट्रॉल और फैटी लीवर जैसी बीमारियों में किया जाता है, जबकि ये स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हो सकती हैं।
यह है मामला
केंद्रीय एजेंसी की जांच में खुलासा हुआ है जिसमें फार्मा कंपनियों का मानना है कि उन्हें प्रतिबंधित दवा लाइसेंस राज्य के प्राधिकरण से मिला है, इसलिए प्रतिबंधित दवाओं का उत्पादन करने पर उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। कानूनी तौर पर फार्मा कंपनियों का यह जवाब उनके पक्ष में है लेकिन भारत के दवा नियामक संगठनों की इस लापरवाही पर भारत सरकार के ड्रग कंट्रोलर डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने नाराजगी जताई है। डॉ. रघुवंशी ने बिना जांच दवाओं का लाइसेंस बांटने को सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया।
नई दिल्ली स्थित केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि निर्माता फार्मा कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया लेकिन कंपनियों ने अपने जवाब में कहा कि उन्हें ये लाइसेंस संबंधित राज्य के प्राधिकरण ने दिया है। इसलिए उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया। इस तर्क के बाद जांच में केंद्रीय एजेंसी को करीब 12 राज्यों के बारे में पता चला जो उनके लिए हैरानी भरा था, क्योंकि नियमों में स्पष्ट तौर पर इन दवाओं के लाइसेंस नहीं देने का प्रावधान है।
ड्रग कंट्रोलर डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने आदेश में लिखा है कि वैज्ञानिक सत्यापन के बिना इन दवाओं का मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है। उन्होंने सभी राज्यों के औषधि नियंत्रकों से एफडीसी के लिए अपने लाइसेंस प्रक्रिया की समीक्षा करने को कहा है।