फर्स्ट स्टेज में फेफड़ों के कैंसर का होगा फ्री इलाज

रोहतक। पीजीआई रोहतक में फेफड़ों के कैंसर का पहली स्टेज पर पता कर इलाज किया जा सकेगा। इसके लिए एक करोड़ रुपए की एंडोब्रोनिकल अल्ट्रासाउंड मशीन ईबीयूएस मंगवाई है। इससे सबसे खतरनाक माने जाने वाले फेफड़ों के कैंसर का आसानी से पता लगा सकेंगे। पीजीआई में जांच शुरू कर दी गई है। इस मशीन से अन्य कैंसर, टीबी, शरीर में गांठ होने वाली बीमारी का पता लगेेगा। अभी सांस की नली के ऊपर और फेफड़ों के अंदर बनी गांठ का पता नहीं चलता था। पेट से संबंधित बीमारी का पता लगाने के लिए मरीज अल्ट्रासाउंड कराते हैं। इससे पेट, सांस की नली व फेफड़ों के अंदर बनी गांठ के बारे में पता लगाया जाता था कि वह कैंसर की है या टीबी की।
मगर अल्ट्रासाउंड मशीन की किरणों से फेफड़ों के ऊपर हड्डियों को स्कैन नहीं किया जाता था। इस कारण फेफड़ों में बनी गांठ या खून की धमनियों का पता नहीं चलता था। सांस की नली के ऊपर और फेफड़ों के अंदर बनी गांठ का पता नहीं चलता था। फिलहाल इस टेस्ट के लिए दिल्ली या चंडीगढ़ निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां 40 से 50 हजार रुपए वसूलते हैं। अब पीजीआई में यह इलाज बिल्कुल फ्री होगा। अब तक यहां 14 लोगों की जांच हो चुकी है।
पूरे उत्तर भारत में सिर्फ 4 जगह ईबीयूएस मशीनें हैं। ईबीयूएस तकनीक पर काम करने से पहले डॉक्टरों को सिम्युलेटर के माध्यम से ट्रेनिंग दी जा रही है। ताकि मरीज को भी कोई नुकसान न हो और डॉक्टर अच्छे से ऑपरेट करना सीख सके। सिम्युलेटर एक वीडियोगेम की तरह की मशीन होती है। इसके माध्यम से डॉक्टर को ईबीयूएस ऑपरेट करना सिखाया जाता है। दिल्ली एम्स के बाद सिर्फ रोहतक पीजीआई में ही ईबीयूएस का सिम्युलेटर है। अन्य अस्पतालों में डॉक्टर सीधा मरीज पर अप्लाई करते हंै। ऐसे में मरीज को खतरा बना रहता है। एंडोब्रोनिकल अल्ट्रासाउंड मशीन में लगी नली के ऊपरी भाग पर वीडियो कैमरा के अलावा अल्ट्रासाउंड प्रॉब लगी होगी। इसे मुंह से सांस की नली में डाला जाएगा तो अल्ट्रासाउंड प्रॉब से नली के ऊपरी हिस्से पर बनी गांठ का पता लग सकेगा। इसी तरह फेफड़ों के अंदर की गांठ या अन्य ट्यूमर का पता लगाया जा सकेगा। इसके बाद सैंपल लेकर पता लगाया जाएगा कि वह कैंसर की है या टीबी की।
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