नई दिल्ली। एफडीसी दवा पर प्रतिबंध के विरोध में फार्मा कंपनियों ने दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली है। अल्केम लेबोरेटरीज और एंटोड फार्मास्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड जैसी फार्मा कंपनियों और अन्य ने न्यायालय से मांग की है कि 156 निश्चित खुराक संयोजन (एफडीसी) दवाओं पर प्रतिबंध लगाने वाली सरकार की हालिया अधिसूचना को कैंसिल कर दिया जाए।
अंतरिम राहत के लिए भी दबाव
एफडीसी दवाओं पर प्रतिबंध लगाने वाली सरकार की अधिसूचना को कैंसिल करने की मांग को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में केस दर्ज करवाया गया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ के समक्ष संक्षिप्त सुनवाई के लिए उठाए गए मामले में दवा कंपनियों ने अंतरिम राहत के लिए भी दबाव डाला। कोर्ट से मांग की गई कि अधिसूचना लागू होने से पहले बनी हुई और अब प्रतिबंधित दवाओं का मौजूदा स्टॉक उपलब्ध हो और वर्तमान में स्टॉकिस्टों और खुदरा विक्रेताओं के पास उपलब्ध है, उसे समाप्त होने की अनुमति दी जाए। फार्मा कंपनियों ने अपनी याचिका में अंतरिम राहत की भी मांग की है।
स्टॉक खत्म होने तक स्टॉकिस्टों और खुदरा विक्रेताओं के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए। फार्मा कंपनियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि अब प्रतिबंधित दवाओं को पहले ही मंजूरी दे दी गई थी और वे कुछ समय से बाजार में हैं। एसीजे मनमोहन ने भी मौखिक रूप से टिप्पणी की कि मौजूदा स्टॉक समाप्त हो जाना चाहिए। हालांकि, पीठ ने सरकार को निर्देश के साथ वापस आने के लिए 2 सितंबर तक का समय दिया है।
एफडीसी दवाओं यानि एकल खुराक के रूप में दो या दो से अधिक ज्ञात दवाओं के संयोजन पर केंद्र सरकार ने इस महीने की शुरुआत में ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 की धारा 26 ए के तहत 156 ऐसी दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। इस प्रकार बिक्री के लिए उनके निर्माण पर रोक लगा दी गई।
प्रतिबंधित दवाओं में माइग्रेन की दवा, लेवोसेटिरिजऩि, डिकॉन्गेस्टेंट सिरप और पेरासिटामोल जैसी एलर्जी-रोधी दवाएं शामिल थीं। सरकार ने इन एफडीसी के उपयोग को तर्कहीन बताया है। यह देखते हुए कि इनका कोई चिकित्सीय लाभ नहीं है।