नई दिल्ली। एंटीबायोटिक मेडिसिन के इस्तेमाल को लेकर केंद्र सरकार सख्त कानून लागू करने जा रही है। इसके लिए तीन समितियां गठन की गई हैं। ये समितियां ऊपरी श्वसन तंत्र, बिगड़ैल बुखार और आबादी में फैले निमोनिया से लडऩे के लिए एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर नियमों पर विचार करेंगी। बता दें कि समितियों में अलग अलग एम्स और देश के शीर्ष चिकित्सा संस्थानों के 19 डॉक्टरों को शामिल किया है।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं से जुड़े दिशानिर्देशों में जल्द संशोधन किया जाएगा। तीनों समिति अलग अलग विषय पर वैज्ञानिक तथ्यों के साथ अपनी सिफारिश सौंपेंगी। उन्होंने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं की प्रैक्टिस और स्वयं दवा लेने का रिवाज बना हुआ है। वहीं, भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मामले भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ-साथ नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए इन दवाओं के इस्तेमाल को सीमित मात्रा में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
बिगड़ैल बुखार के खासतौर पर कोरोना महामारी के बाद से कुछ मरीजों में लक्षण लंबे समय तक देखने को मिल रहे हैं। इनकी पहचान करना काफी मुश्किल होता है। कई बार शुरुआती दिनों में ही एंटीबायोटिक दवाएं शुरू कर देते हैं। आगे चलकर इनके लिए दवाओं के विकल्प काफी सीमित रह जाते हैं। साथ ही इन दवाओं के कारण रोगाणुरोधी प्रतिरोध की आशंका भी रहती है।
इन्फ्लुएंजा ए (एच1एन1) और (एच3एन2) के अलावा इन्फ्लूएंजा बी, पैराइन्फ्लूएंजा 3, रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस (आरएसवी) और एडिनोवायरस आबादी में प्रसारित हैं।