नई दिल्ली। छोटी दवा कंपनियां केंद्र सरकार के रडार पर आ गई हैं। खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में दवाइयाँ सप्लाई करने वाली फार्मा कंपनियां नियामक जांच के दायरे में हैं। भारतीय औषधि महानियंत्रक ने राज्य अधिकारियों को उनकी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखने का निर्देश दिया है। कहा है कि वे राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों के ज़रिए दवा गुणवत्ता मानकों का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई करें।

यह कदम दवा सप्लाई से जुड़े कंपनियों की गुणवत्ता और अनुपालन प्रथाओं पर बढ़ती चिंताओं के बीच उठाया गया है। शीर्ष औषधि नियामक एजेंसी ने नकली और गैर-मानक गुणवत्ता (एनएसक्यू) वाली दवाओं के बार-बार निर्माण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का भी आह्वान किया है। राज्यों से कहा गया है कि वे किसी भी नियामक कार्रवाई के बारे में सीडीएससीओ को सूचित करें।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि हम अभी भी शेड्यूल एम के अनुपालन पर प्रतिक्रिया के इंतज़ार में हैं। ज़्यादातर छोटी दवा कंपनियाँ गुणवत्ता जांच से निपटने में असमर्थ हैं। सरकार को पूरा भरोसा है कि उचित निगरानी के बिना, ये कंपनियाँ कम सेवा वाले क्षेत्रों में दवा सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करती हैं।

सीडीएससीओ ने देशभर में 1,000 से अधिक जोखिम-आधारित निरीक्षण (आरबीआई) किए हैं। ये निरीक्षण दवा निर्माताओं के बीच गैर-अनुपालन की पहचान करने और निगरानी ढांचे को मजबूत करने में महत्वपूर्ण रहे हैं। इसके बावजूद, अनेक विनियामक चुनौतियां बनी हुई हैं, और सीडीएससीओ ने राज्यों से तत्काल सुधारों को प्राथमिकता देने को कहा है। पहला कदम संशोधित अनुसूची एम को अपनाना है। इसने नई दवा लाइसेंसिंग में खामियों को दूर करने को भी कहा है।