अलीगढ़। एंटीवायरस इंजेक्शन रेमडेसिविर कोरोना वायरस संक्रमण के गंभीर मरीजों के लिए लाभदायक है। सरकार ने इस दवा को ऑफ लेवल ड्रग की श्रेणी में रखा है, फिर भी यह दवा बाजार से गायब हो गई है। दीनदयाल कोविड केयर सेंटर ने तो किल्लत होने पर लखनऊ से व्यवस्था कर ली गई है, मगर प्राइवेट कोविड केयर सेंटरों को बमुश्किल यह दवा मिल रही है। कंपनी संबंधित मरीज का ब्योरा उपलब्ध कराने की शर्त पर ही दवा सप्लाई कर रही हैं। दवा की किल्लत का फायदा उठाकर कुछ निजी अस्पताल संचालक करीब 5400 रुपये के इंजेक्शन की कीमत मरीज से 15-20 हजार तक वसूल रहे हैं। अधिकारी सबकुछ जानकर भी अनजान हैं। कोरोना संक्रमण को खत्म करने वाली आइवरमेक्टिन व डॉक्सी की आपूर्ति सामान्य है।

वहीं शहर की बड़ी फुटकर दुकानों से लेकर फफाला थोक बाजार में रेमडेसिविर दवा उपलब्ध नहीं है। कोई गंभीर मरीज निजी अस्पताल में भर्ती होता है तो उसे रेमडेसिविर की डोज देना महंगा पड़ता है। पता चला है कि कुछ अस्पतालों में इसकी एक डोज की कीमत 20 हजार रुपये तक वसूली जा रही है। कई बार मरीज को दो-तीन या रोजाना ही यह इंजेक्शन दिए जा रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग के समय इन अस्पतालों ने महामारी घोषित हो चुकी कोरोना के मरीजों को इलाज में हर संभव मदद देने का भरोसा दिया था, मगर यहां दवा व अन्य सुविधाओं के नाम पर मरीजों से खूब वसूली हो रही है।

तो वहीं दीनदयाल अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एबी सिंह बताते हैं कि कोविड के सामान्य मरीजों पर अब आइवरमेक्टिन व डॉक्सी ही कारगर है। यह वायरस को खत्म कर देती हैं। कई बार सीरियस हालत में लाए गए मरीज को रेमडेसिविर दवा की जरूरत होती है। पूर्व में सीएमओ के स्तर से दवा उपलब्ध कराई जा रही थी। अब लखनऊ स्थित ड्रग वेयर हाउस से सीधे खरीद कर रहे हैं। सभी दवाएं पर्याप्त मात्रा में हैं। डॉक्सी का इस्तेमाल बढ़ने के कारण अब हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन बहुत कम खप रही है। जिक व विटामिन-सी के साथ एंटीबायोटिक दवा मरीजों को खिला रहे हैं, इनकी कोई कमी नहीं है।

सीएमओ -डॉ. बीपीएस कल्याणी के मुताबिक कोविड अस्पतालों में किसी दवा की किल्लत नहीं है। रेमडेसिविर दवा भी उपलब्ध है। बाजार में इस दवा की खुली बिक्री पर रोक है। सरकार की मंशा है कि कोरोना की दवा पर मुनाफाखोरी न हो, कुछ निजी कोविड केयर सेंटर के संचालक मनमानी करते ही हैं। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में उन्हें सहयोग करना चाहिए न कि कमाई का अवसर मानें।

विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना संक्रमित मरीज के शरीर में कई बार ऑक्सीजन का स्तर कम होने लगता है, जिसे हाइपोक्सिमिया कहते हैं। मरीज का बुखार व खांसी कम नहीं हो रही होती है तो उसे रेमडेसिविर दवा दी जाती है। मरीज मॉडरेट से सिविर कैटेगरी में जा रहा होता है, तभी इस दवा का प्रयोग किया जाता है। इस दवा को अमेरिका की गिलएड कंपनी बनाती है। कंपनी के पास इस दवा का पेटेंट है। भारत में कई प्रमुख कंपनियां यह दवा बना रही हैं। जनपद में दीनदयाल अस्पताल, मेडिकल कॉलेज व तीन प्राइवेट कोविड केयर सेंटरों में यह दवा इस्तेमाल हो रही है।

जिला अलीगढ़ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने बताया कि कंपनियों पर इस दवा की सुचारू आपूर्ति का दबाव है। कंपनियां यह दवा अपने स्टाकिस्ट की बजाय सीधे हॉस्पिटलों को सप्लाई कर रही हैं। अस्पताल संचालक को मरीज का ब्योरा भेजने के बाद ही दवा मिलती है, ताकि कालाबाजारी न हो। फिर भी मरीज को कई गुना कीमत पर मिलने की शिकायतें मिल रही हैं।