जयपुर। ऑर्गन ट्रांसप्लांट केस में राजस्थान हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है। यह नोटिस एसीएस गृह, एसीएस चिकित्सा शिक्षा डॉ. रश्मि गुप्ता, समुचित प्राधिकारी चिकित्सा शिक्षा और गोपाल ढाका एसीपी गांधीनगर सहित अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त श्रीमन लाल मीणा को जारी किया गया है।

नोटिस में कोर्ट ने पूछा है कि अंग प्रत्यारोपण प्रकरण में अदालत में केस दर्ज कराने का प्रावधान होने के बावजूद एफआईआर (FIR) दर्ज क्यों की गई? जस्टिस नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश डॉ. संदीप गुप्ता की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

पुलिस ने रचा षड्यंत्र

याचिका में अधिवक्ता हेमंत नाहटा और रिपुदमन सिंह ने कहा कि मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में न तो एफआईआर दर्ज हो सकती है और न ही पुलिस अपने स्तर पर गिरफ्तारी कर सकती है। पुलिस को आरोप पत्र भी पेश करने का अधिकार नहीं है।

मेडिकल शिक्षा विभाग के साथ षड्यंत्र रचकर पुलिस ने आईपीसी की धाराओं में मामला दर्ज कर गिरफ्तारियां की हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि प्रत्यारोपण कराने वाले बांग्लादेशी नागरिकों ने समस्त दस्तावेज अपने देश में बनाकर भारत के ढाका स्थित उच्चायोग से मेडिकल वीसा लिया था।

वहां की सरकार और उच्चायोग ने इसके लिए एनओसी भी जारी की थी। इसके अलावा तीन साल में किए गए हर किडनी प्रत्यारोपण की सूचना फोर्टिंस अस्पताल ने निरंतर सरकार को दी थी। इसी मामले में गुरुग्राम में पहले से ही एफआईआर दर्ज है। एफआईआर दर्ज करने वाली डॉ. रश्मि गुप्ता ने आईपीसी की धाराओं में एफआईआर कराई, जबकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा लागू नहीं होती।

याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को अवैध घोषित करने की गुहार

याचिका में गुहार की गई है कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया जाए और उसे हिरासत में रखने की अवधि का प्रतिदिन दस लाख रुपए के हिसाब से हर्जाना दिलाया जाए। इस हर्जाने की वसूली उसे झूठा फंसाने वाले पुलिस अधिकारी और डॉ. रश्मि गुप्ता के खाते से की जाए। इस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है।