अम्बाला (बृजेन्द्र मल्होत्रा)। उत्कल केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के राज्य स्तरीय चुनाव 16 नवंबर को हुए थे, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष जगन्नाथ ने बतौर मुख्यातिथि एजीएम में सम्बोधन करना था। अभी तक के इतिहास में पहली बार ऐसी घटना हुई कि देशभर में चर्चा का विषय बन गया कि ऐसा क्या है उत्कल केमिस्ट एसोसिएशन के पद पर जो मतदान की प्रक्रिया पूरी होते ही मतगणना से पूर्व कुछ समर्थक अपने आका की हार से आशंकित मतपेटी ही उठाकर भाग खड़े हुए। काफी मशक्कत करने के बाद भी मतपेटी का कोई सुराग नही मिला 17 नवंबर को एजीएम में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगन्नाथ ने अपने सम्बोधन में कहा कि देशभर में ऐसी घटना पहली बार हुई कि चुनाव पूरा होने के बाद मतगणना से पूर्व मतपेटी का अपहरण कर लिया गया। अब 30 से 45 दिन में पुन: चुनावी प्रक्रिया अपनाई जाएगी, तब तक महासचिव प्रशांत महापात्रा के नेतृत्व में संगठन हित में काम करें। राष्ट्रीय अध्यक्ष के सम्बोधन से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उन्होंने ही मतपेटी का अपहरण करवाया हो। उधर, राज्य स्तरीय चुनावायुक्त विक्रम केशवानी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष की बात अनसुनी कर 30 नवंबर को ही चुनावी बैठक बुला ली ।
गौरतलब है कि गत 3 वर्ष के कार्यकाल में 3 महासचिव बदले गए। वर्तमान में ये पद प्रशांत महापात्रा के पास है। उन्ही के मार्गदर्शन पर इस वर्तमान चुनावी प्रक्रिया में जो बजट पारित हुआ वह 30 लाख का था। सूत्र बताते हैं कि अभी तक 60 लाख का खर्चा दिखा चुके हैं, जो वास्तविक खर्च से कहीं दूर है, परन्तु महापात्रा को कोई आपत्ति नहीं अपितु और खर्च हो जाने की बात की जा रही है। बता दें कि राज्य में 20,000 ड्रग्स लाइसेंस होल्डर हैं। 80 की सदस्यता पर एक व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त का संविधान बताते हैं। ऐसे में करीब 200 मतदाताओं को मताधिकार दिया गया, जबकि 4 जिलों को मताधिकार से वंचित रखा गया है। सूत्र बताते हैं कि राज्य संगठन में राज्य स्तरीय पदाधिकारियों को भी मताधिकार नहीं दिया गया । नामांकन के समय प्रत्याशियों को चुनाव अधिकारी की तरफ से मतदाता सूची उपलब्ध करवाना कर्तव्य का महत्वपूर्ण अंग है, जिसे 12 नवम्बर को निभाया गया। अत: 12 नवम्बर को प्रत्याशियों को मतदाता सूची दी गई। इसमें महत्वपूर्ण जिला भुवनेश्वर सहित 4 जिलों को मताधिकार नहीं दिया गया। चार दिन में राज्य भ्रमण कर मतदाताओं को कैसे अपने पक्ष में मत डालने के लिए संपर्क किया जाए तो मतपेटी का अपहरण ही उचित मार्ग लगा। ऐसे में चुनावों की सार्थकता पर गहन विचार करने पर लगा कि चुनाव की आड़ में अपना खर्चा निकालने की होड़ लगी हुई है। कौन कितना अधिक बटोरेगा। ध्यान देने की बात है कि इतना धन राज्य कोष में आया कैसे ?