नई दिल्ली: कैशलेस सिस्टम से सरकार और आम आदमी को कितना फायदा होगा, यह तो आगे देखने वाली बात होगी, लेकिन ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों की चांदी हो रही है। देश का फार्मा सेक्टर भी इससे अछूता नहीं है। भारत के दवा दुकानदारों के कड़े विरोध से रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ रहा ई-फार्मा सेक्टर तेजी से गति पकड़ रहा है। फार्मा सेक्टर में ऑनलाइन-ऑफलाइन की लड़ाई में नोटबंदी ने ई-फार्मा कंपनियों को भारी बढ़त दिला दी है।नोटबंदी से कैशलेस के चलते ऑनलाइन कारोबार को तगड़ा बूस्ट मिला है। इसका सीधा फायदा ऑनलाइन दवाईयां बेचने वाली कंपनियों को भी हुआ है। शुरुआत के कुछ दिनों में दवा दुकानों पर बैन नोट चलाने की छूट थी लेकिन उसके बाद ऑनलाइन दवा की बिक्री और तेजी से बढ़ी।
ई-फार्मा कंपनी 1एमजी की बिक्री 20 फीसदी बढ़ी है तो नेटमेड्स की डिमांड में भी लगभग 20 फीसदी का उछाल दिखा है। पहले जहां ऑनलाइन फार्मेसी बाजार के 70 फीसदी लोग कैश ऑन डिलिवरी का ऑप्शन रखते थे वहीं सिर्फ 30 फीसदी लोग कैश पेमेंट का विकल्प चुन रहे हैं। इस तेजी को कायम रखने के लिए 1 एमजी 20 फीसदी डिस्काउंट और 15 फीसदी कैशबैक दे रही है। तो नेटमेड्स भी 20 फीसदी डिस्काउंट दे रही है। मेडलाइफ मेडिसिन में भी 25 फीसदी का डिस्काउंट है। ऑनलाइन दवाइयों की बिक्री में उछाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में इसे लेकर कोई साफ नीति नहीं है। इन कंपनियों के खिलाफ मेडिकल स्टोर वालों ने कई बार हड़तालें भी की हैं। दवाइयों की ऑनलाइन बिक्री पर रोक तो नहीं है लेकिन ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के सभी नियमों का पालन करने की सख्त हिदायत है। बिना प्रिस्क्रिप्शन दवाइयां नहीं बेची जा सकतीं।