नई दिल्ली। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए तरह -तरह की दवा का प्रयोग किया जा रहा हैं। लेकिन कुछ दवा जांच में फेल भी हो रही है। अब इसी कड़ी में आयुष-64 दवा भी संसय में आ गई है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी में हल्के लक्षण वाले मरीजों के लिए देश के हर जिले में आयुष-64 दवा बांटी जा रही है।

सरकार इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अभियान भी चला रही है लेकिन चिकित्सीय अध्ययन में तस्वीर कुछ और ही सामने आई है। बहरहाल कोविड-19 महामारी को लेकर यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें अलग अलग वैज्ञानिक दावे सामने आए हों। इससे पहले हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ( एचसीक्यू ), आइवरमेक्टिन, स्टेरायड युक्त दवाए, रेमडेसिविर, प्लाज्मा और कोवाक्सिन परीक्षण से जुड़े कई मामले सामने आए है।

जोधपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और जयपुर स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद के 16 डॉक्टरों की टीम को यह दवा बेअसर मिली है। इस चिकित्सीय अध्ययन को मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में भी प्रकाशित किया गया है, जिसके मुताबिक दो अलग अलग मरीजों के समूह पर चिकित्सीय अध्ययन में आयुष 64 का कोई महत्वूपर्ण लाभ नहीं मिला है। इनका मानना है कि एक बड़े स्तर पर दवा का परीक्षण होना बहुत जरूरी है। जबकि केंद्र सरकार के ही अधीन आयुष मंत्रालय, सीएसआईआर सहित अन्य संस्थान इस दवा के लाभकारी होने का दावा कर चुके हैं।

जोधपुर एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के डॉ. जयकरण चरण ने बताया कि हमने आयुष-64 का प्रभाव जानने के लिए 60 मरीजों का चयन किया था। इनके दो समूह (30-30) बनाए गए। एक समूह को आयुष 64 दवा दी गई जबकि दूसरे को प्लेसबो (एक प्रकार का पाउडर, लेकिन दवा नहीं) दिया गया। जब दोनों समूह के मरीजों का कुछ दिन बाद आरटीपीसीआर टेस्ट किया गया तो हमें कोई बड़ा अंतर नहीं मिला था। दोनों समूह में समान लोग निगेटिव हुए थे। इसलिए हमें आयुष-64 दवा का संक्रमित मरीजों पर कोई असर नहीं मिला है।

साल 1980 में मलेरिया के लिए जड़ी बूटियों से तैयार आयुष-64 को कोरोना वायरस के उपचार में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। बीती 29 अप्रैल, को आयुष मंत्रालय ने इसके क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम सार्वजनिक किए थे जिसमें कहा गया कि यह दवा न सिर्फ वायरस से लड़ने में सक्षम है बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मजबूत करती है। इसलिए लक्षण-रहित, हल्के व कम गंभीर रोगियों के इलाज में यह दवा कारगर होने का दावा है।