नई दिल्ली। नॉन- इंवैसिव प्रीनैटल टेस्ट (एनआइपीटी) के जरिए गर्भवती के खून की जांच से गर्भस्थ शिशु की जेनेटिक बीमारियों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। एम्स, सर गंगाराम अस्पताल समेत देशभर के 10 अस्पतालों में एनआइपीटी पर हुए अध्ययन के बाद इसकी पुष्टि हुई है। यह अध्ययन बीते दिनों जर्नल ऑफ एबोस्ट्रेटिक्स गॉयनेकोलॉजी ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ है। गर्भस्थ शिशु की जेनेटिक बीमारियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए वर्तमान समय में परंपरागत परीक्षणों के तौर पर डबल मार्कर (पहली तिमाही में) और मार्कर टेस्ट (दूसरी तिमाही) के अलावा अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।
एनआइपीटी, मेडजीनोम की कार्यक्रम निदेशक डॉ. प्रिया कदम ने बताया कि इस प्रणाली के नतीजे सटीक नहीं रहते हैं। हमने सर गंगाराम अस्पताल (दिल्ली), ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स दिल्ली), इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल (दिल्ली), पीजीआइ (चंडीगढ़), रेनबो हॉस्पिटल (हैदराबाद), अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (कोच्चि) समेत कुल दस अस्पतालों में पांच हजार से अधिक भारतीय मरीजों पर एनआइपीटी का प्रयोग कर तुलनात्मक अध्ययन किया। इसमें एनआइपीटी की सटीकता 99 फीसद से अधिक रही। इस पर हुए अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता सर गंगाराम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स एंड जीनोमिक्स के निदेशक डॉ. आइसी वर्मा ने कहा कि इस अध्ययन के जरिये परंपरागत स्क्रीनिंग परीक्षणों की तुलना में एनआइपीटी अधिक सटीक परीक्षण विधि के रूप में प्रमाणित हुई है। यह भारत का पहला व्यवस्थित अध्ययन है।