पीलीभीत। कोरोना काल में जहां लोग इस गंभीर बीमारी से लड़ने की कोशिश कर रहें हो तो वहीँ दूसरी तरफ वायरल और जेनेरिक दवाएं न मिलने से भी मरीज परेशान है। एक तरफ जन औषधि केंद्र खोले जा रहे है तो वहीँ दूसरी तरफ इन्हीं केंद्रों पर दवा उपलब्ध न होने के मामले सामने आ रहें है। गौरतलब है कि लोगों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केंद्र खोले गए हैं। लेकिन जिला अस्पताल परिसर में बने जन औषधि केंद्र पर दवाओं का टोटा है। करीब एक माह से दवा की सप्लाई नहीं मिली है। दवा केंद्र खाली पड़ा है। 1200 में बमुश्किल 80-90 तरह की दवाएं ही केंद्र पर उपलब्ध है। यहां तक की नॉर्मल दवाओं का भी टोटा बना हुआ है। दवा लेने आ रहे लोग लौट रहे हैं। मजबूरी में लोगों को मेडिकल स्टोर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। इस वक्त जन औषधि केंद्र पर आटोरवैस्टिन, एस्प्रिन , रोजोवेस्टेन, एंटीबायोटिक, एटिनोलाल टेल्मीसार्टन, ओमीप्राजोल, ग्लिमेप्राइड, एसिक्लोफेनाक, फेबुक्सोटैट, फेक्सोफेनाडाइन, मॉटेलुकॉस्ट समेत कई दवाएं मौजदू नहीं है। इसके अलावा इन दवाओं के अलावा न्यूरो, ह्दय सबंधी दवाएं उपलब्ध नहीं है।

दरअसल दर्द बुखार में दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवा एसिक्लोफेनाक (पैरासिटामाल) की 10 गोली वाली स्ट्रिप की कीमत जन औषधि केंद्र में नौ रुपये है, जबकि ब्रांडेड की कीमत 45 रुपये है। एंटीबायोटिक के रूप में अमोक्सिसिल्लिन-625 की कीमत औषधि केंद्र में छह गोली की स्ट्रिप 51 रुपये में मिलती है, जबकि ब्रांडेड की कीमत 110 रुपये है। शुगर में दी जाने वाली दवा ग्लिमेप्राइड एक एमजी की 10 गोली की कीमत औषधि केंद्र में 16 रुपये है, जबकि बाजार में इसकी कीमत 65 रुपये प्रति स्ट्रिप है। वहीं गैस में दी जाने वाली दवा पैंटोप्राजोल की 10 गोली वाली स्ट्रिप की कीमत औषधि केंद्र में 20 रुपये है, जबकि बाजार में इसकी कीमत 190 रुपये है। इसकी दूसरी दवा ओमीप्राजोल की कीमत औषधि केंद्र पर नौ रुपये है। जबकि बाजार में इसकी कीमत 40 रुपये हो जाती है।

जिला अस्पताल के फिजिशियन डॉ. रमाकांत सागर ने बताया कि वैसे तो सरकारी अस्पताल में अधिकांश दवाएं उपलब्ध होती ह, इसके अलावा जेनरिक दवाएं भी कारगार होती है। ब्रांडेड दवाओं की तरह वह भी काम करती है। फर्क इतना है कि ब्रांडेड दवाओं की मार्केटिंग ज्यादा होती है। इसलिए लोगों को लगता है कि वह दवा ज्यादा कारगार है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। जेनरिक दवाएं भी उसी तरह काम करती है, जैसे ब्रांडेड दवाएं करती है।

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों की शुरूआत लोगों को सस्ती दर पर दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई है। जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के दामों में जमीन आसमान का अंतर होता है। कई लोगों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह ब्रांडेड दवाएं खरीद सकें, ऐसे लोगों को जेनेरिक दवाएं काफी राहत देती हैं। इसी क्रम में जिला अस्पताल में जन औषधि केंद्र खोला गया था, मगर मरीजों को इस केंद्र का फायदा नहीं मिल पा रहा है। पिछले एक माह से केंद्र पर दवाएं उपलब्ध नहीं है। इधर, डॉक्टरों का भी जोर मरीजों को जेनेरिक दवाएं लिखने के बजाए ब्रांडेड दवाएं लिखने पर रहता है। दवाओं की आपूर्ति न होने के कारण केंद्र में दवा रखने की वाली रेक खाली पड़ी है। केंद्र पर दर्द के लिए डाईक्लो जैसी सामान्य दर्द निवारक दवा भी नहीं है। नजला जुकाम की एंटी कोल्ड नहीं है। खांसी के लिए सिरप भी खत्म हो गए हैं। लीवर की दवा, खाज-खुजली आदि के मरीजों को दवा नहीं मिल रही है। हार्ट से संबंधित, शुगर की दवा नहीं है। आंखों की दवा जेंटामाइसिन और सिप्रोफ्लोक्सिन आदि नहीं है। दवा न होने से मरीजों और उनके तीमारदारों को वापस लौटना पड़ रहा है।