नई दिल्ली। कोरोना वायरस को लेकर भारतीय फार्मा सेक्टर में काफी चिंता बनी हुई है। सरकार और उद्योग संगठन फिक्की के अनुसार अभी दवाओं के कच्चे माल का दो-तीन महीने का स्टॉक है, लेकिन कुछ जरूरी दवाओं की कीमत बढऩे लगी हैं। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भरोसा दिलाया है कि इससे भारत में दवाइयों की किल्लत नहीं होने दी जाएगी। यदि जरूरत हुई तो सरकार दवा निर्माण के लिए कच्चे माल को एयरलिफ्ट करा लेगी। सरकार दवा उत्पादन से जुड़े कच्चे माल पर लगने वाले आयात शुल्क में भी कमी कर सकती है।
गौरतलब है कि देश में दवा उत्पादन के लिए 70 फीसद कच्चे माल का निर्यात चीन से होता है। वहां से कच्चे माल की सप्लाई चेन पर पडऩे वाले असर पर उद्योग जगत के साथ बैठक के बाद सीतारमण ने बताया कि देश में मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता है और कच्चा माल भी उपलब्ध है। सरकार चीन के अलावा अन्य देशों से या अन्य माध्यमों के जरिए कच्चे माल की आपूर्ति पर विचार कर रही है। जीवनरक्षक दवाओं का जायजा लिया जा रहा है। फार्मा उद्योग का कहना है कि फिलहाल दवा उद्योग पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं है, लेकिन सप्लाई चेन कुछ और समय के लिए बाधित रहने से दवा संकट गहरा सकता है।
उधर, फार्मा कंपनियों के बीच इस कमी को लेकर अलग-अलग राय हैं। रिचर थेमीस फार्मास्यूटिकल के मैनेजिंग डायरेक्टर रजनीश शाह आनंद का कहना है कि बाजार में कुछ लोग इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। तीन महीने का कच्चा माल कंपनियों के पास है। चीन में गरमी बढऩे के साथ ही कोरोना के ध्वस्त होने की उम्मीद है और सभी इसका इंतजार कर रहे हैं। समप्लेक्स फार्मा के जनरल मैनेजर (ऑपरेशन) दीपक यादव के अनुसार कोरोना का असर फार्मा उद्योग पर दिखना शुरू हो गया है। कच्चे माल की आपूर्ति रुकने की वजह न सिर्फ दाम बढऩे लगे हैं, बल्कि दवाओं की सप्लाई का भरोसा भी टूटने लगा है। उद्योग न तो दवा की लागत तय कर पा रहा है, न ही सप्लाई की गारंटी ले पा रहा है। फिक्की की इसी रिपोर्ट के अनुसार 20 से अधिक ऐसी दवाएं भी हैं जिनके कच्चे माल का स्टॉक फरवरी महीने में समाप्त हो रहा है। पैरासिटामाल और आइबूप्रोफेन जैसी दवाएं भी इनमें शामिल हैं। ऐसे में, इन दवाइयों की कमी देश में हो सकती है। कई दवाओं के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाने की बात चल रही है।