अहमदाबाद। जायडस फार्मा की दवा को कालाजार (लीशमैनियासिस) के इलाज के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मंजूरी दे दी है। कंपनी ने बताया कि कालाजार के उपचार की प्रमुख दवा मिल्टेफोसिन के लिए कच्चे माल यानी एपीआई को डब्ल्यूएचओ ने प्री क्वालिफिकेशन मंजूरी प्रदान कर दी है। सूची में जोड़े जाने के बाद अब इस दवा की वैश्विक स्तर तक पहुंच हो सकेगी।
गौरतलब है कि लीशमैनियासिस प्रोटोजोआ परजीवियों के कारण होती है। यह संक्रमित मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज काली मक्खी के काटने से फैलती है। यह बीमारी कुपोषण, विस्थापन, रहने की खराब स्थिति, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता और सबसे गरीब लोगों को होती है।
इस बीमारी के तीन मुख्य रूप बताए गए हैं। इनमें क्यूटैनियस लीशमैनियासिस (सीएल), विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) जिसे कालाजार भी कहा जाता है और म्युकोक्यूटैनियस लीशमैनियासिस (एमसीएल)। सीएल सबसे ज्यादा पाई जाने वाली बीमारी है। वीएल सबसे गंभीर है और एमसीएल में आदमी अपने रोजमर्रा के काम भी नहीं कर पाता।
हर साल वीएल के 30 हजार मामले आते हैं सामने
विशेषज्ञों के अनुसार अगर सही समय पर वीएल का इलाज नहीं कराया जाए तो 90 फीसदी मामलों में मरीज की जान चली जाती है। अनुमानत: हर साल 70 हजार से 1 लाख मामले आते हैं और इनमें वीएल के 30 हजार मामले होते हैं।
साल 2018 में सीएल और वीएल के लिए क्रमश: 92 और 82 देशों को महामारी के लिहाज से संवेदनशील माना गया था। आज 1 अरब से अधिक लोग लीशमैनियासिस की आशंका वाले क्षेत्रों में रहते हैं और संक्रमण के जोखिम में हैं। बता दें कि जायडस लाइफसाइंसेज के टीका प्रौद्योगिकी केंद्र (वीटीसी) के दो आरऐंडडी केंद्र लीशमैनियासिस रोधी टीका निर्माण में लगे हैं। ये केंद्र इटली के कैटेनिया और अहमदाबाद में हैं।