मुंबई। भारत के 1.2 लाख करोड़ रुपए के घरेलू दवा उद्योग में हर साल हजारों ब्रांड शुरू होते हैं। लगभग हर प्रमुख दवा कंपनी देश में सैकड़ों ब्रांडों की बिक्री करती है। विश्लेषण बताता है कि इन कंपनियों की घरेलू आमदनी में ज्यादातर हिस्सा शीर्ष 10 ब्रांडों का है। अनुमान जताया गया है कि आने वाले समय में कंपनियां अपने सबसे अधिक आमदनी वाले ब्रांडों पर ज्यादा ध्यान देंगी। उद्योग के सूत्रों का कहना कि नए ब्रांडों की शुरुआत घट रही है। यह वर्ष 2016 में 4,516 थी, जो 2017 में घटकर 3,932 पर आ गई। वर्ष 2018 में 3,000 से अधिक ब्रांड शुरू हुए। ऐसा लगता है कि बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां राजस्व में बढ़ोतरी के लिए अपने शीर्ष 10 ब्रांडों पर ज्यादा निर्भर हैं।
हाल की एक रिपोर्ट में मोतीलाल ओसवाल ने दर्शाया है कि ऑगमेंटीन (एंटीबायोटिक), जेनटेक (ऐंटैसिड), कालपोल (पेरासीटामोल), टी बैक्ट (एंटीबायोटिक टोपिकल ऑइनमेंट) और बेटनोवेट जैसे पुराने ब्रांडों की बिक्री में दो अंकों में वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए नवंबर में ऑगमेंटीन की बिक्री में सालाना आधार पर 17.2 फीसदी वृद्धि हुई है। टी बैक्ट में 73.6 फीसदी वृद्धि हुई है। बेटनोवेट सी में 49.6 फीसदी और कालपोल की बिक्री में 13.8 फीसदी वृद्धि हुई है। पहले जीएसके फार्मा के उपाध्यक्ष (दक्षिण एशिया) और प्रबंध निदेशक (भारत) अन्नास्वामी वैद्यीश ने कहा था कि हमने कारोबारी जटिलताएं कम करने के लिए ब्रांडों की संख्या घटाने का फैसला किया है। इससे हमारा परिचालन आसान हो जाएगा और हम वहां अपनी ताकत लगा सकेंगे, जहां उसे लगाना फायदेमंद है। हर ब्रांड को शुरू करने में काफी समय और संसाधन खर्च होते हैं। कंपनी ने पिछले साल अपने ब्रांडों की संख्या 130 से घटाकर 70 की है। इसे अगले एक-डेढ़ साल में घटाकर 20 पर लाने और शीर्ष 6-7 ब्रांडों पर ध्यान देने का लक्ष्य है। सेंट्रम ब्रोकिंग के रंजीत कपाडिय़ा ने कहा कि ऐसे ब्रांडों को खत्म करने की रणनीति अच्छी है, जिनका परिचालन आय में खास योगदान नहीं है। एक अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनी सनोफी इंडिया को घरेलू राजस्व का 53 फीसदी हिस्सा 10 ब्रांडों से प्राप्त होता है। यह आंकड़ा फाइजर के लिए 47 फीसदी और मर्क के लिए 62 फीसदी है।  भारतीय दवा कंपनियों को भी अपने घरेलू राजस्व का बड़ा हिस्सा कुछ शीर्ष ब्रांडों से प्राप्त होता है। बायोकॉन के भारत के राजस्व में उसके शीर्ष 10 ब्रांडों का हिस्सा 76.7 फीसदी है। इन ब्रांडों में पांच मधुमेह के इलाज से संबंधित हैं। कंपनी के सबसे ज्यादा बिक्री वाले अन्य ब्रांडों में ज्यादातर ऑनकोलजी से संबंधित हैं। विश्लेषकों का कहना है कि दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाली बहुत सी चीजें कीमत नियंत्रण के दायरे में आ गई हैं और अब फिक्सड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में दवा कंपनियां अपने अहम उत्पादों पर ध्यान दे रही हैं, जो उनका मार्जिन बढ़ा सकें।