हल्द्वानी (उत्तराखंड): बाजार में जेनेरिक दवाओं के नाम पर खुलेआम धोखा हो रहा है। रोगी को मिलने वाली दवा और उसे बनाने वाली कंपनी, दोनों ही जेनेरिक है लेकिन एमआरपी ब्रांडेड कंपनियों वाला है। मतलब सस्ती दवा का हक नए तरीकों से छीना जा रहा है। खास बात ये कि राज्य में भाजपा की सरकार है, बावजूद इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना को कालिख लग रही है।
जानकारी के मुताबिक, दवा का असली दाम कम होता है लेकिन बाजार में जब रोगी के हाथ में दवा पहुंचती है तो वह इतनी महंगी होती है कि रोगी इलाज कराने में सोचने को विवश हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि महंगे इलाज की वजह से मरने वालों की संख्या चार गुना बढ़ी है। रिपोर्ट को आधार बनाकर ही प्रधानमंत्री मोदी ने जेनेरिक दवाओं का चलन अनिवार्य किया था। हालांकि नियमों को इतना कठिन किया गया है कि लापरवाही बरतने वाले को कड़ा दंड भुगतना पड़ेगा, बावजूद धंधा जारी है।
कम रेट पर जेनरिक दवाइयां रोगी को मिल सकें, इसके लिए हर अस्पताल और बाजार में जन औषधि केंद्रों की स्थापना की जा रही है। यहां अन्य सामान्य मेडिकल स्टोरों की तुलना में काफी कम रेटों में दवा उपलब्ध होती है। जब इस व्यवस्था से अन्य मेडिकल स्टोर संचालकों का कारोबार प्रभावित होने लगा तो दवा कारोबारियों ने इसका तोड़ निकालना शुरु किया। जो कंपनियां ब्रांडेड और जेनेरिक दोनों दवाएं बना रही हैं, उन कंपनियों से ब्रांडेड दवाएं बेचने वाले जेनेरिक दवा खरीद रहे हैं, लेकिन फर्क यह है कि उन जेनेरिक दवाओं पर एमआरपी ब्रांडेड कंपनी यानी दाम महंगे चस्पा हैं। रोगी को दवा जेनेरिक कहकर ही दी जा रही है और पूछताछ में कंपनी भी जेनेरिक बताकर संतुष्ट किया जा रहा है, परंतु खेल कुछ और चल रहा है। औषधि और स्वास्थ्य विभाग को इसे गंभीरता से एक्शन लेना चाहिए।